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अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
سُورَةٌ أَنزَلْنَاهَا وَفَرَضْنَاهَا وَأَنزَلْنَا فِيهَا آيَاتٍ بَيِّنَاتٍ لَّعَلَّكُمْ تَذَكَّرُونَ |1|24
यह एक (महत्वपूर्ण) सूरा है, जिसे हमने उतारा है। और इसे हमने अनिवार्य किया है, और इसमें हमने स्पष्ट आयतें (आदेश) अवतरित की हैं। कदाचित तुम शिक्षा ग्रहण करो।
الزَّانِيَةُ وَالزَّانِي فَاجْلِدُوا كُلَّ وَاحِدٍ مِّنْهُمَا مِائَةَ جَلْدَةٍ ۖ وَلَا تَأْخُذْكُم بِهِمَا رَأْفَةٌ فِي دِينِ اللَّهِ إِن كُنتُمْ تُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ ۖ وَلْيَشْهَدْ عَذَابَهُمَا طَائِفَةٌ مِّنَ الْمُؤْمِنِينَ |2|24
व्यभिचारिणी और व्यभिचारी - इन दोनों में से प्रत्येक को सौ कोड़े मारो और अल्लाह के धर्म (क़ानून) के विषय में तुम्हें उनपर तरस न आए, यदि तुम अल्लाह और अन्तिम दिन को मानते हो। और उन्हें दंड देते समय मोमिनों में से कुछ लोगों को उपस्थित रहना चाहिए।
الزَّانِي لَا يَنكِحُ إِلَّا زَانِيَةً أَوْ مُشْرِكَةً وَالزَّانِيَةُ لَا يَنكِحُهَا إِلَّا زَانٍ أَوْ مُشْرِكٌ ۚ وَحُرِّمَ ذَٰلِكَ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ |3|24
व्यभिचारी किसी व्यभिचारिणी या बहुदेववादी स्त्री से ही निकाह करता है। और (इसी प्रकार) व्यभिचारिणी, किसी व्यभिचारी या बहुदेववादी से ही निकाह करती है। और यह मोमिनों पर हराम है।
وَالَّذِينَ يَرْمُونَ الْمُحْصَنَاتِ ثُمَّ لَمْ يَأْتُوا بِأَرْبَعَةِ شُهَدَاءَ فَاجْلِدُوهُمْ ثَمَانِينَ جَلْدَةً وَلَا تَقْبَلُوا لَهُمْ شَهَادَةً أَبَدًا ۚ وَأُولَٰئِكَ هُمُ الْفَاسِقُونَ |4|24
और जो लोग शरीफ़ और पाकदामन स्त्री पर तोहमत लगाएँ, फिर चार गवाह न लाएँ, उन्हें अस्सी कोड़े मारो और उनकी गवाही कभी भी स्वीकार न करो - वही हैं जो अवज्ञाकारी हैं। -
إِلَّا الَّذِينَ تَابُوا مِن بَعْدِ ذَٰلِكَ وَأَصْلَحُوا فَإِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ |5|24
सिवाय उन लोगों के जो इसके पश्चात तौबा कर लें और सुधार कर लें। तो निश्चय ही अल्लाह बहुत क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है।
وَالَّذِينَ يَرْمُونَ أَزْوَاجَهُمْ وَلَمْ يَكُن لَّهُمْ شُهَدَاءُ إِلَّا أَنفُسُهُمْ فَشَهَادَةُ أَحَدِهِمْ أَرْبَعُ شَهَادَاتٍ بِاللَّهِ ۙ إِنَّهُ لَمِنَ الصَّادِقِينَ |6|24
और जो लोग अपनी पत्नियों पर दोषारोपण करें और उनके पास स्वयं उनके अपने सिवा गवाह मौजूद न हों, तो उनमें से एक (अर्थात पति) चार बार अल्लाह की क़सम खाकर यह गवाही दे कि वह बिलकुल सच्चा है।
وَالْخَامِسَةُ أَنَّ لَعْنَتَ اللَّهِ عَلَيْهِ إِن كَانَ مِنَ الْكَاذِبِينَ |7|24
और पाँचवी बार यह गवाही दे कि यदि वह झूठा हो तो उसपर अल्लाह की फिटकार हो।
وَيَدْرَأُ عَنْهَا الْعَذَابَ أَن تَشْهَدَ أَرْبَعَ شَهَادَاتٍ بِاللَّهِ ۙ إِنَّهُ لَمِنَ الْكَاذِبِينَ |8|24
पत्ऩी से भी सज़ा को यह बात टाल सकती है कि वह चार बार अल्लाह की क़सम खाकर गवाही दे कि वह बिलकुल झूठा है।
وَالْخَامِسَةَ أَنَّ غَضَبَ اللَّهِ عَلَيْهَا إِن كَانَ مِنَ الصَّادِقِينَ |9|24
और पाँचवी बार यह कहे कि उसपर (उस स्त्री पर) अल्लाह का प्रकोप हो, यदि वह सच्चा हो।
وَلَوْلَا فَضْلُ اللَّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُ وَأَنَّ اللَّهَ تَوَّابٌ حَكِيمٌ |10|24
यदि तुम पर अल्लाह की उदार कृपा और उसकी दया न होती (तो तुम संकट में पड़ जाते), और यह कि अल्लाह बड़ा तौबा क़बूल करनेवाला,अत्यन्त तत्वदर्शी है।
إِنَّ الَّذِينَ جَاءُوا بِالْإِفْكِ عُصْبَةٌ مِّنكُمْ ۚ لَا تَحْسَبُوهُ شَرًّا لَّكُم ۖ بَلْ هُوَ خَيْرٌ لَّكُمْ ۚ لِكُلِّ امْرِئٍ مِّنْهُم مَّا اكْتَسَبَ مِنَ الْإِثْمِ ۚ وَالَّذِي تَوَلَّىٰ كِبْرَهُ مِنْهُمْ لَهُ عَذَابٌ عَظِيمٌ |11|24
जो लोग तोहमत घड़ लाए हैं वे तुम्हारे ही भीतर की एक टोली है। तुम उसे अपने लिए बुरा मत समझो, बल्कि वह भी तुम्हारे लिए अच्छा ही है। उनमें से प्रत्येक व्यक्ति के लिए उतना ही हिस्सा है जितना गुनाह उसने कमाया, और उनमें से जिस व्यक्ति ने उसकी ज़िम्मेदारी का एक बड़ा हिस्सा अपने सिर लिया उसके लिए बड़ी यातना है।
لَّوْلَا إِذْ سَمِعْتُمُوهُ ظَنَّ الْمُؤْمِنُونَ وَالْمُؤْمِنَاتُ بِأَنفُسِهِمْ خَيْرًا وَقَالُوا هَٰذَا إِفْكٌ مُّبِينٌ |12|24
ऐसा क्यों न हुआ कि जब तुम लोगों ने उसे सुना था, तब मोमिन पुरुष और मोमिन स्त्रियाँ अपने आपसे अच्छा गुमान करते और कहते कि "यह तो खुली तोहमत है?"
لَّوْلَا جَاءُوا عَلَيْهِ بِأَرْبَعَةِ شُهَدَاءَ ۚ فَإِذْ لَمْ يَأْتُوا بِالشُّهَدَاءِ فَأُولَٰئِكَ عِندَ اللَّهِ هُمُ الْكَاذِبُونَ |13|24
आख़िर वे इसपर चार गवाह क्यों न लाए? अब जबकि वे गवाह नहीं लाए, तो अल्लाह की दृष्टि में वही झूठे हैं।
وَلَوْلَا فَضْلُ اللَّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُ فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ لَمَسَّكُمْ فِي مَا أَفَضْتُمْ فِيهِ عَذَابٌ عَظِيمٌ |14|24
यदि तुमपर दुनिया और आख़िरत में अल्लाह की उदार कृपा और उसकी दयालुता न होती तो जिस बात में तुम पड़ गए उसके कारण तुम्हें एक बड़ी यातना आ लेती।
إِذْ تَلَقَّوْنَهُ بِأَلْسِنَتِكُمْ وَتَقُولُونَ بِأَفْوَاهِكُم مَّا لَيْسَ لَكُم بِهِ عِلْمٌ وَتَحْسَبُونَهُ هَيِّنًا وَهُوَ عِندَ اللَّهِ عَظِيمٌ |15|24
सोचो, जब तुम एक-दूसरे से उस (झूठ) को अपनी ज़बानों पर लेते जा रहे थे और तुम अपने मुँह से वह कुछ कहे जा रहे थे, जिसके विषय में तुम्हें कोई ज्ञान न था और तुम उसे एक साधारण बात समझ रहे थे; हालाँकि अल्लाह के निकट वह एक भारी बात थी।
وَلَوْلَا إِذْ سَمِعْتُمُوهُ قُلْتُم مَّا يَكُونُ لَنَا أَن نَّتَكَلَّمَ بِهَٰذَا سُبْحَانَكَ هَٰذَا بُهْتَانٌ عَظِيمٌ |16|24
और ऐसा क्यों न हुआ कि जब तुमने उसे सुना था तो कह देते, "हमारे लिए उचित नहीं कि हम ऐसी बात ज़बान पर लाएँ। महान और उच्च है तू (अल्लाह)! यह तो एक बड़ी तोहमत है?"
يَعِظُكُمُ اللَّهُ أَن تَعُودُوا لِمِثْلِهِ أَبَدًا إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ |17|24
अल्लाह तुम्हें नसीहत करता है कि फिर कभी ऐसा न करना, यदि तुम मोमिन हो।
وَيُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمُ الْآيَاتِ ۚ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ |18|24
अल्लाह तो आयतों को तुम्हारे लिए खोल-खोलकर बयान करता है। अल्लाह तो सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है।
إِنَّ الَّذِينَ يُحِبُّونَ أَن تَشِيعَ الْفَاحِشَةُ فِي الَّذِينَ آمَنُوا لَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ ۚ وَاللَّهُ يَعْلَمُ وَأَنتُمْ لَا تَعْلَمُونَ |19|24
जो लोग चाहते हैं कि उन लोगों में जो ईमान लाए हैं, अश्लीलता फैले, उनके लिए दुनिया और आख़िरत (लोक-परलोक) में दुखद यातना है। और अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते।
وَلَوْلَا فَضْلُ اللَّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُ وَأَنَّ اللَّهَ رَءُوفٌ رَّحِيمٌ |20|24
और यदि तुमपर अल्लाह का उदार अनुग्रह और उसकी दयालुता न होती (तॊ अवश्य ही तुमपर यातना आ जाती) और यह कि अल्लाह बड़ा करुणामय, अत्यन्त दयावान है।
۞ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَتَّبِعُوا خُطُوَاتِ الشَّيْطَانِ ۚ وَمَن يَتَّبِعْ خُطُوَاتِ الشَّيْطَانِ فَإِنَّهُ يَأْمُرُ بِالْفَحْشَاءِ وَالْمُنكَرِ ۚ وَلَوْلَا فَضْلُ اللَّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُ مَا زَكَىٰ مِنكُم مِّنْ أَحَدٍ أَبَدًا وَلَٰكِنَّ اللَّهَ يُزَكِّي مَن يَشَاءُ ۗ وَاللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ |21|24
ऐ ईमान लानेवालो! शैतान के पद-चिन्हों पर न चलो। जो कोई शैतान के पद-चिन्हों पर चलेगा तो वह तो उसे अश्लीलता औऱ बुराई का आदेश देगा। और यदि अल्लाह का उदार अनुग्रह और उसकी दयालुता तुमपर न होती तो तुममें से कोई भी आत्म-विकास को प्राप्त न कर सकता। किन्तु अल्लाह जिसे चाहता है, सँवारता-निखारता है। अल्लाह तो सब कुछ सुनता, जानता है।
وَلَا يَأْتَلِ أُولُو الْفَضْلِ مِنكُمْ وَالسَّعَةِ أَن يُؤْتُوا أُولِي الْقُرْبَىٰ وَالْمَسَاكِينَ وَالْمُهَاجِرِينَ فِي سَبِيلِ اللَّهِ ۖ وَلْيَعْفُوا وَلْيَصْفَحُوا ۗ أَلَا تُحِبُّونَ أَن يَغْفِرَ اللَّهُ لَكُمْ ۗ وَاللَّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ |22|24
तुममें जो बड़ाईवाले और सामर्थ्यवान हैं, वे नातेदारों, मुहताजों और अल्लाह की राह में घरबार छोड़नेवालों को देने से बाज़ रहने की क़सम न खा बैठें। उन्हें चाहिए कि क्षमा कर दें और उनसे दरगुज़र करें। क्या तुम यह नहीं चाहते कि अल्लाह तुम्हें क्षमा करे? अल्लाह बहुत क्षमाशील,अत्यन्त दयावान है।
إِنَّ الَّذِينَ يَرْمُونَ الْمُحْصَنَاتِ الْغَافِلَاتِ الْمُؤْمِنَاتِ لُعِنُوا فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ وَلَهُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌ |23|24
निस्संदेह जो लोग शरीफ़, पाकदामन, भोली-भाली बेख़बर ईमानवाली स्त्रियों पर तोहमत लगाते हैं उनपर दुनिया और आख़िरत में फिटकार है। और उनके लिए एक बड़ी यातना है।
يَوْمَ تَشْهَدُ عَلَيْهِمْ أَلْسِنَتُهُمْ وَأَيْدِيهِمْ وَأَرْجُلُهُم بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ |24|24
जिस दिन कि उनकी ज़बानें और उनके हाथ और उनके पाँव उनके विरुद्ध उसकी गवाही देंगे, जो कुछ वे करते रहे थे,
يَوْمَئِذٍ يُوَفِّيهِمُ اللَّهُ دِينَهُمُ الْحَقَّ وَيَعْلَمُونَ أَنَّ اللَّهَ هُوَ الْحَقُّ الْمُبِينُ |25|24
उस दिन अल्लाह उन्हें उनका ठीक बदला पूरी तरह दे देगा जिसके वे पात्र हैं। और वे जान लेंगे कि निस्संदेह अल्लाह ही सत्य है खुला हुआ, प्रकट कर देनेवाला।
الْخَبِيثَاتُ لِلْخَبِيثِينَ وَالْخَبِيثُونَ لِلْخَبِيثَاتِ ۖ وَالطَّيِّبَاتُ لِلطَّيِّبِينَ وَالطَّيِّبُونَ لِلطَّيِّبَاتِ ۚ أُولَٰئِكَ مُبَرَّءُونَ مِمَّا يَقُولُونَ ۖ لَهُم مَّغْفِرَةٌ وَرِزْقٌ كَرِيمٌ |26|24
गन्दी चीज़ें गन्दें लोगों के लिए हैं और गन्दे लोग गन्दी चीज़ों के लिए, और अच्छी चीज़ें अच्छे लोगों के लिए हैं और अच्छे लोग अच्छी चीज़ों के लिए। वे लोग उन बातों से बरी हैं, जो वे कह रहे हैं। उनके लिए क्षमा और सम्मानित आजीविका है।
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَدْخُلُوا بُيُوتًا غَيْرَ بُيُوتِكُمْ حَتَّىٰ تَسْتَأْنِسُوا وَتُسَلِّمُوا عَلَىٰ أَهْلِهَا ۚ ذَٰلِكُمْ خَيْرٌ لَّكُمْ لَعَلَّكُمْ تَذَكَّرُونَ |27|24
ऐ ईमान लानेवालो! अपने घरों के सिवा दूसरे घऱों में प्रवेश न करो, जब तक कि रज़ामन्दी हासिल न कर लो और उन घरवालों को सलाम न कर लो। यही तुम्हारे लिए उत्तम है, कदाचित तुम ध्यान रखो।
فَإِن لَّمْ تَجِدُوا فِيهَا أَحَدًا فَلَا تَدْخُلُوهَا حَتَّىٰ يُؤْذَنَ لَكُمْ ۖ وَإِن قِيلَ لَكُمُ ارْجِعُوا فَارْجِعُوا ۖ هُوَ أَزْكَىٰ لَكُمْ ۚ وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ عَلِيمٌ |28|24
फिर यदि उनमें किसी को न पाओ, तो उनमें प्रवेश न करो जब तक कि तुम्हें अनुमति प्राप्त न हो। और यदि तुमसे कहा जाए कि वापस हो जाओ तो वापस हो जाओ, यही तुम्हारे लिए अधिक अच्छी बात है। अल्लाह भली-भाँति जानता है जो कुछ तुम करते हो।
لَّيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ أَن تَدْخُلُوا بُيُوتًا غَيْرَ مَسْكُونَةٍ فِيهَا مَتَاعٌ لَّكُمْ ۚ وَاللَّهُ يَعْلَمُ مَا تُبْدُونَ وَمَا تَكْتُمُونَ |29|24
इसमें तुम्हारे लिए कोई दोष नहीं है कि तुम ऐसे घरों में प्रवेश करो जिनमें कोई न रहता हो, जिनमें तुम्हारे फ़ायदे की कोई चीज़ हो। और अल्लाह जानता है जो कुछ तुम प्रकट करते हो और जो कुछ छिपाते हो।
قُل لِّلْمُؤْمِنِينَ يَغُضُّوا مِنْ أَبْصَارِهِمْ وَيَحْفَظُوا فُرُوجَهُمْ ۚ ذَٰلِكَ أَزْكَىٰ لَهُمْ ۗ إِنَّ اللَّهَ خَبِيرٌ بِمَا يَصْنَعُونَ |30|24
ईमानवाले पुरुषों से कह दो कि अपनी निगाहें बचाकर रखें और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें। यही उनके लिए अधिक अच्छी बात है। अल्लाह को उसकी पूरी ख़बर रहती है, जो कुछ वे किया करते हैं।
وَقُل لِّلْمُؤْمِنَاتِ يَغْضُضْنَ مِنْ أَبْصَارِهِنَّ وَيَحْفَظْنَ فُرُوجَهُنَّ وَلَا يُبْدِينَ زِينَتَهُنَّ إِلَّا مَا ظَهَرَ مِنْهَا ۖ وَلْيَضْرِبْنَ بِخُمُرِهِنَّ عَلَىٰ جُيُوبِهِنَّ ۖ وَلَا يُبْدِينَ زِينَتَهُنَّ إِلَّا لِبُعُولَتِهِنَّ أَوْ آبَائِهِنَّ أَوْ آبَاءِ بُعُولَتِهِنَّ أَوْ أَبْنَائِهِنَّ أَوْ أَبْنَاءِ بُعُولَتِهِنَّ أَوْ إِخْوَانِهِنَّ أَوْ بَنِي إِخْوَانِهِنَّ أَوْ بَنِي أَخَوَاتِهِنَّ أَوْ نِسَائِهِنَّ أَوْ مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُهُنَّ أَوِ التَّابِعِينَ غَيْرِ أُولِي الْإِرْبَةِ مِنَ الرِّجَالِ أَوِ الطِّفْلِ الَّذِينَ لَمْ يَظْهَرُوا عَلَىٰ عَوْرَاتِ النِّسَاءِ ۖ وَلَا يَضْرِبْنَ بِأَرْجُلِهِنَّ لِيُعْلَمَ مَا يُخْفِينَ مِن زِينَتِهِنَّ ۚ وَتُوبُوا إِلَى اللَّهِ جَمِيعًا أَيُّهَ الْمُؤْمِنُونَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ |31|24
और ईमानवाली स्त्रियों से कह दो कि वे भी अपनी निगाहें बचाकर रखें और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें। और अपने श्रृंगार प्रकट न करें, सिवाय उसके जो उनमें खुला रहता है। और अपने सीनों (वक्षस्थलों) पर अपने दुपट्टे डाले रहें और अपना श्रृंगार किसी पर ज़ाहिर न करें सिवाय अपने पतियों के या अपने बापों के या अपने पतियों के बापों के या अपने बेटों के या अपने पतियों के बेटों के या अपने भाइयों के या अपने भतीजों के या अपने भांजों के या मेल-जोल की स्त्रियों के या जो उनकी अपनी मिल्कियत में हो उनके, या उन अधीनस्थ पुरुषों के जो उस अवस्था को पार कर चुके हों जिसमें स्त्री की ज़रूरत होती है, या उन बच्चों के जो स्त्रियों के परदे की बातों से परिचित न हों। और स्त्रियाँ अपने पाँव धरती पर मारकर न चलें कि अपना जो श्रृंगार छिपा रखा हो, वह मालूम हो जाए। ऐ ईमानवालो! तुम सब मिलकर अल्लाह से तौबा करो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो।
وَأَنكِحُوا الْأَيَامَىٰ مِنكُمْ وَالصَّالِحِينَ مِنْ عِبَادِكُمْ وَإِمَائِكُمْ ۚ إِن يَكُونُوا فُقَرَاءَ يُغْنِهِمُ اللَّهُ مِن فَضْلِهِ ۗ وَاللَّهُ وَاسِعٌ عَلِيمٌ |32|24
तुममें जो बेजोड़े के हों और तुम्हारे ग़ुलामों और तुम्हारी लौंडियों मे जो नेक और योग्य हों, उनका विवाह कर दो। यदि वे ग़रीब होंगे तो अल्लाह अपने उदार अनुग्रह से उन्हें समृद्ध कर देगा। अल्लाह बड़ी समाईवाला, सर्वज्ञ है।
وَلْيَسْتَعْفِفِ الَّذِينَ لَا يَجِدُونَ نِكَاحًا حَتَّىٰ يُغْنِيَهُمُ اللَّهُ مِن فَضْلِهِ ۗ وَالَّذِينَ يَبْتَغُونَ الْكِتَابَ مِمَّا مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ فَكَاتِبُوهُمْ إِنْ عَلِمْتُمْ فِيهِمْ خَيْرًا ۖ وَآتُوهُم مِّن مَّالِ اللَّهِ الَّذِي آتَاكُمْ ۚ وَلَا تُكْرِهُوا فَتَيَاتِكُمْ عَلَى الْبِغَاءِ إِنْ أَرَدْنَ تَحَصُّنًا لِّتَبْتَغُوا عَرَضَ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا ۚ وَمَن يُكْرِههُّنَّ فَإِنَّ اللَّهَ مِن بَعْدِ إِكْرَاهِهِنَّ غَفُورٌ رَّحِيمٌ |33|24
और जो विवाह का अवसर न पा रहे हों उन्हें चाहिए कि पाकदामनी अपनाए रहें, यहाँ तक कि अल्लाह अपने उदार अनुग्रह से उन्हें समृद्ध कर दे। और जिन लोगों पर तुम्हें स्वामित्व का अधिकार प्राप्त हो उनमें से जो लोग लिखा-पढ़ी के इच्छुक हो उनसे लिखा-पढ़ी कर लो, यदि तुम्हें मालूम हो कि उनमें भलाई है। और उन्हें अल्लाह के माल में से दो, जो उसने तुम्हें प्रदान किया है। और अपनी लौंडियों को सांसारिक जीवन-सामग्री की चाह में व्यविचार के लिए बाध्य न करो, जबकि वे पाकदामन रहना भी चाहती हों। औऱ इसके लिए जो कोई उन्हें बाध्य करेगा, तो निश्चय ही अल्लाह उनके बाध्य किए जाने के पश्चात अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है।
وَلَقَدْ أَنزَلْنَا إِلَيْكُمْ آيَاتٍ مُّبَيِّنَاتٍ وَمَثَلًا مِّنَ الَّذِينَ خَلَوْا مِن قَبْلِكُمْ وَمَوْعِظَةً لِّلْمُتَّقِينَ |34|24
हमने तुम्हारी ओर खुली हुई आयतें उतार दी हैं और उन लोगों की मिसालें भी पेश कर दी हैं, जो तुमसे पहले गुज़रे हैं, और डर रखनेवालों के लिए नसीहत भी।
۞ اللَّهُ نُورُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ مَثَلُ نُورِهِ كَمِشْكَاةٍ فِيهَا مِصْبَاحٌ ۖ الْمِصْبَاحُ فِي زُجَاجَةٍ ۖ الزُّجَاجَةُ كَأَنَّهَا كَوْكَبٌ دُرِّيٌّ يُوقَدُ مِن شَجَرَةٍ مُّبَارَكَةٍ زَيْتُونَةٍ لَّا شَرْقِيَّةٍ وَلَا غَرْبِيَّةٍ يَكَادُ زَيْتُهَا يُضِيءُ وَلَوْ لَمْ تَمْسَسْهُ نَارٌ ۚ نُّورٌ عَلَىٰ نُورٍ ۗ يَهْدِي اللَّهُ لِنُورِهِ مَن يَشَاءُ ۚ وَيَضْرِبُ اللَّهُ الْأَمْثَالَ لِلنَّاسِ ۗ وَاللَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ |35|24
अल्लाह आकाशों और धरती का प्रकाश है। (मोमिन के दिल में) उसके प्रकाश की मिसाल ऐसी है जैसे एक ताक़ है, जिसमें एक चिराग़ है - वह चिराग़ एक फ़ानूस में है। वह फ़ानूस ऐसा है मानो चमकता हुआ कोई तारा है। - वह चिराग़ ज़ैतून के एक बरकतवाले वृक्ष के तेल से जलाया जाता है, जो न पूर्वी है न पश्चिमी। उसका तेल आप ही आप भड़का पड़ता है, यद्यपि आग उसे न भी छुए। प्रकाश पर प्रकाश! - अल्लाह जिसे चाहता है अपने प्रकाश के प्राप्त होने का मार्ग दिखा देता है। अल्लाह लोगों के लिए मिसालें प्रस्तुत करता है। अल्लाह तो हर चीज़ जानता है।-
فِي بُيُوتٍ أَذِنَ اللَّهُ أَن تُرْفَعَ وَيُذْكَرَ فِيهَا اسْمُهُ يُسَبِّحُ لَهُ فِيهَا بِالْغُدُوِّ وَالْآصَالِ |36|24
उन घरों में जिनको ऊँचा करने और जिनमें अपने नाम के याद करने का अल्लाह ने हुक्म दिया है,
رِجَالٌ لَّا تُلْهِيهِمْ تِجَارَةٌ وَلَا بَيْعٌ عَن ذِكْرِ اللَّهِ وَإِقَامِ الصَّلَاةِ وَإِيتَاءِ الزَّكَاةِ ۙ يَخَافُونَ يَوْمًا تَتَقَلَّبُ فِيهِ الْقُلُوبُ وَالْأَبْصَارُ |37|24
उनमें ऐसे लोग प्रभात काल और संध्या समय उसकी तसबीह करते हैं जिन्हें अल्लाह की याद और नमाज़ें क़ायम करने और ज़कात देने से न तो व्यापार ग़ाफ़िल करता है और न क्रय-विक्रय। वे उस दिन से डरते रहते हैं जिसमें दिल और आँखें विकल हो जाएँगी।
لِيَجْزِيَهُمُ اللَّهُ أَحْسَنَ مَا عَمِلُوا وَيَزِيدَهُم مِّن فَضْلِهِ ۗ وَاللَّهُ يَرْزُقُ مَن يَشَاءُ بِغَيْرِ حِسَابٍ |38|24
ताकि अल्लाह उन्हें बदला प्रदान करे। उनके अच्छे से अच्छे कामों का, और अपने उदार अनुग्रह से उन्हें और अधिक प्रदान करें। अल्लाह जिसे चाहता है बेहिसाब देता है।
وَالَّذِينَ كَفَرُوا أَعْمَالُهُمْ كَسَرَابٍ بِقِيعَةٍ يَحْسَبُهُ الظَّمْآنُ مَاءً حَتَّىٰ إِذَا جَاءَهُ لَمْ يَجِدْهُ شَيْئًا وَوَجَدَ اللَّهَ عِندَهُ فَوَفَّاهُ حِسَابَهُ ۗ وَاللَّهُ سَرِيعُ الْحِسَابِ |39|24
रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया उनके कर्म चटियल मैदान में मरीचिका की तरह हैं कि प्यासा उसे पानी समझता है, यहाँ तक कि जब वह उसके पास पहुँचा तो उसे कुछ भी न पाया। अलबत्ता अल्लाह ही को उसके पास पाया, जिसने उसका हिसाब पूरा-पूरा चुका दिया। और अल्लाह बहुत जल्द हिसाब करता है।
أَوْ كَظُلُمَاتٍ فِي بَحْرٍ لُّجِّيٍّ يَغْشَاهُ مَوْجٌ مِّن فَوْقِهِ مَوْجٌ مِّن فَوْقِهِ سَحَابٌ ۚ ظُلُمَاتٌ بَعْضُهَا فَوْقَ بَعْضٍ إِذَا أَخْرَجَ يَدَهُ لَمْ يَكَدْ يَرَاهَا ۗ وَمَن لَّمْ يَجْعَلِ اللَّهُ لَهُ نُورًا فَمَا لَهُ مِن نُّورٍ |40|24
या फिर जैसे एक गहरे समुद्र में अँधेरे, लहर के ऊपर लहर छा रही है; उसके ऊपर बादल है, अँधेरे हैं एक पर एक। जब वह अपना हाथ निकाले तो उसे वह सुझाई देता प्रतीत न हो। जिसे अल्लाह ही प्रकाश न दे फिर उसके लिए कोई प्रकाश नहीं।
أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ يُسَبِّحُ لَهُ مَن فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَالطَّيْرُ صَافَّاتٍ ۖ كُلٌّ قَدْ عَلِمَ صَلَاتَهُ وَتَسْبِيحَهُ ۗ وَاللَّهُ عَلِيمٌ بِمَا يَفْعَلُونَ |41|24
क्या तुमने नहीं देखा कि जो कोई भी आकाशों और धरती में है, अल्लाह की तसबीह (गुणगान) कर रहा है और पंख पसारे हुए पक्षी भी? हर एक अपनी नमाज़ और तसबीह से परिचित है। अल्लाह भली-भाँति जानता है जो कुछ वे करते हैं।
وَلِلَّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۖ وَإِلَى اللَّهِ الْمَصِيرُ |42|24
अल्लाह ही के लिए है आकाशों और धरती का राज्य। और अल्लाह ही की ओर लौटकर जाना है।
أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ يُزْجِي سَحَابًا ثُمَّ يُؤَلِّفُ بَيْنَهُ ثُمَّ يَجْعَلُهُ رُكَامًا فَتَرَى الْوَدْقَ يَخْرُجُ مِنْ خِلَالِهِ وَيُنَزِّلُ مِنَ السَّمَاءِ مِن جِبَالٍ فِيهَا مِن بَرَدٍ فَيُصِيبُ بِهِ مَن يَشَاءُ وَيَصْرِفُهُ عَن مَّن يَشَاءُ ۖ يَكَادُ سَنَا بَرْقِهِ يَذْهَبُ بِالْأَبْصَارِ |43|24
क्या तुमने देखा नहीं कि अल्लाह बादल को चलाता है। फिर उनको परस्पर मिलाता है। फिर उसे तह पर तह कर देता है। फिर तुम देखते हो कि उसके बीच से मेह बरसता है? और आकाश से- उसमें जो पहाड़ हैं (बादल जो पहाड़ जैसे प्रतीत होते हैं उनसे) - ओले बरसाता है। फिर जिस पर चाहता है गिराता है, और जिसे चाहता है उसे हटा देता है। ऐसा प्रतीत होता है कि बिजली की चमक निगाहों को उचक ले जाएगी।
يُقَلِّبُ اللَّهُ اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَعِبْرَةً لِّأُولِي الْأَبْصَارِ |44|24
अल्लाह ही रात और दिन का उलट-फेर करता है। निश्चय ही आँखें रखनेवालों के लिए इसमें एक शिक्षा है।
وَاللَّهُ خَلَقَ كُلَّ دَابَّةٍ مِّن مَّاءٍ ۖ فَمِنْهُم مَّن يَمْشِي عَلَىٰ بَطْنِهِ وَمِنْهُم مَّن يَمْشِي عَلَىٰ رِجْلَيْنِ وَمِنْهُم مَّن يَمْشِي عَلَىٰ أَرْبَعٍ ۚ يَخْلُقُ اللَّهُ مَا يَشَاءُ ۚ إِنَّ اللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ |45|24
अल्लाह ने हर जीवधारी को पानी से पैदा किया, तो उनमें से कोई अपने पेट के बल चलता है और कोई उनमें दो टाँगों पर चलता है और कोई चार (टाँगों) पर चलता है। अल्लाह जो चाहता है, पैदा करता है। निस्संदेह अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।
لَّقَدْ أَنزَلْنَا آيَاتٍ مُّبَيِّنَاتٍ ۚ وَاللَّهُ يَهْدِي مَن يَشَاءُ إِلَىٰ صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ |46|24
हमने सत्य को प्रकट कर देनेवाली आयतें उतार दी हैं। आगे अल्लाह जिसे चाहता है सीधे मार्ग की ओर लगा देता है।
وَيَقُولُونَ آمَنَّا بِاللَّهِ وَبِالرَّسُولِ وَأَطَعْنَا ثُمَّ يَتَوَلَّىٰ فَرِيقٌ مِّنْهُم مِّن بَعْدِ ذَٰلِكَ ۚ وَمَا أُولَٰئِكَ بِالْمُؤْمِنِينَ |47|24
वे मुनाफ़िक लोग कहते हैं कि "हम अल्लाह और रसूल पर ईमान लाए और हमने आज्ञापालन स्वीकार किया।" फिर इसके पश्चात उनमें से एक गिरोह मुँह मोड़ जाता है। ऐसे लोग मोमिन नहीं हैं।
وَإِذَا دُعُوا إِلَى اللَّهِ وَرَسُولِهِ لِيَحْكُمَ بَيْنَهُمْ إِذَا فَرِيقٌ مِّنْهُم مُّعْرِضُونَ |48|24
जब उन्हें अल्लाह और उसके रसूल की ओर बुलाया जाता है, ताकि वह उनके बीच फ़ैसला करे तो क्या देखते हैं कि उनमें से एक गिरोह कतरा जाता है;
وَإِن يَكُن لَّهُمُ الْحَقُّ يَأْتُوا إِلَيْهِ مُذْعِنِينَ |49|24
किन्तु यदि हक़ उन्हें मिलनेवाला हो तो उसकी ओर बड़े आज्ञाकारी बनकर चले आएँ।
أَفِي قُلُوبِهِم مَّرَضٌ أَمِ ارْتَابُوا أَمْ يَخَافُونَ أَن يَحِيفَ اللَّهُ عَلَيْهِمْ وَرَسُولُهُ ۚ بَلْ أُولَٰئِكَ هُمُ الظَّالِمُونَ |50|24
क्या उनके दिलों में रोग है या वे सन्देह में पड़े हुए हैं या उनको यह डर है कि अल्लाह औऱ उसका रसूल उनके साथ अन्याय करेंगे? नहीं, बल्कि बात यह है कि वही लोग अत्याचारी हैं।
إِنَّمَا كَانَ قَوْلَ الْمُؤْمِنِينَ إِذَا دُعُوا إِلَى اللَّهِ وَرَسُولِهِ لِيَحْكُمَ بَيْنَهُمْ أَن يَقُولُوا سَمِعْنَا وَأَطَعْنَا ۚ وَأُولَٰئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ |51|24
मोमिनों की बात तो बस यह होती है कि जब अल्लाह और उसके रसूल की ओर बुलाए जाएँ, ताकि वह उनके बीच फ़ैसला करे, तो वे कहें, "हमने सुना और आज्ञापालन किया।" और वही सफलता प्राप्त करनेवाले हैं।
وَمَن يُطِعِ اللَّهَ وَرَسُولَهُ وَيَخْشَ اللَّهَ وَيَتَّقْهِ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الْفَائِزُونَ |52|24
और जो कोई अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करे और अल्लाह से डरे और उसकी सीमाओं का ख़याल रखे, तो ऐसे ही लोग सफल हैं।
۞ وَأَقْسَمُوا بِاللَّهِ جَهْدَ أَيْمَانِهِمْ لَئِنْ أَمَرْتَهُمْ لَيَخْرُجُنَّ ۖ قُل لَّا تُقْسِمُوا ۖ طَاعَةٌ مَّعْرُوفَةٌ ۚ إِنَّ اللَّهَ خَبِيرٌ بِمَا تَعْمَلُونَ |53|24
वे अल्लाह की कड़ी-कड़ी क़समें खाते हैं कि यदि तुम उन्हें हुक्म दो तो वे अवश्य निकल खड़े होंगे। कह दो, "क़समें न खाओ। सामान्य नियम के अनुसार आज्ञापालन ही वास्तविक चीज़ है। तुम जो कुछ करते हो अल्लाह उसकी ख़बर रखता है।"
قُلْ أَطِيعُوا اللَّهَ وَأَطِيعُوا الرَّسُولَ ۖ فَإِن تَوَلَّوْا فَإِنَّمَا عَلَيْهِ مَا حُمِّلَ وَعَلَيْكُم مَّا حُمِّلْتُمْ ۖ وَإِن تُطِيعُوهُ تَهْتَدُوا ۚ وَمَا عَلَى الرَّسُولِ إِلَّا الْبَلَاغُ الْمُبِينُ |54|24
कहो, "अल्लाह का आज्ञापालन करो और उसके रसूल का कहा मानो। परन्तु यदि तुम मुँह मोड़ते हो तो उसपर तो बस वही ज़िम्मेदारी है जिसका बोझ उसपर डाला गया है, और तुम उसके ज़िम्मेदार हो जिसका बोझ तुमपर डाला गया है। और यदि तुम आज्ञा का पालन करोगे तो मार्ग पा लोगे। और रसूल पर तो बस साफ़-साफ़ (संदेश) पहुँचा देने ही की ज़िम्मेदारी है।
وَعَدَ اللَّهُ الَّذِينَ آمَنُوا مِنكُمْ وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَيَسْتَخْلِفَنَّهُمْ فِي الْأَرْضِ كَمَا اسْتَخْلَفَ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ وَلَيُمَكِّنَنَّ لَهُمْ دِينَهُمُ الَّذِي ارْتَضَىٰ لَهُمْ وَلَيُبَدِّلَنَّهُم مِّن بَعْدِ خَوْفِهِمْ أَمْنًا ۚ يَعْبُدُونَنِي لَا يُشْرِكُونَ بِي شَيْئًا ۚ وَمَن كَفَرَ بَعْدَ ذَٰلِكَ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الْفَاسِقُونَ |55|24
अल्लाह ने उन लोगों से जो तुममें से ईमान लाए और उन्होने अच्छे कर्म किए, वादा किया है कि वह उन्हें धरती में अवश्य सत्ताधिकार प्रदान करेगा, जैसे उसने उनसे पहले के लोगों को सत्ताधिकार प्रदान किया था। औऱ उनके लिए अवश्य उनके उस धर्म को जमाव प्रदान करेगा जिसे उसने उनके लिए पसन्द किया है। और निश्चय ही उनके वर्तमान भय के पश्चात उसे उनके लिए शान्ति और निश्चिन्तता में बदल देगा। वे मेरी बन्दगी करते हैं, मेरे साथ किसी चीज़ को साझी नहीं बनाते। और जो कोई इसके पश्चात इनकार करे, तो ऐसे ही लोग अवज्ञाकारी हैं।
وَأَقِيمُوا الصَّلَاةَ وَآتُوا الزَّكَاةَ وَأَطِيعُوا الرَّسُولَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ |56|24
नमाज़ का आयोजन करो और ज़कात दो और रसूल की आज्ञा का पालन करो, ताकि तुमपर दया की जाए।
لَا تَحْسَبَنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا مُعْجِزِينَ فِي الْأَرْضِ ۚ وَمَأْوَاهُمُ النَّارُ ۖ وَلَبِئْسَ الْمَصِيرُ |57|24
यह कदापि न समझो कि इनकार की नीति अपनानेवाले धरती में क़ाबू से बाहर निकल जानेवाले हैं। उनका ठिकाना आग है, और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है।
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لِيَسْتَأْذِنكُمُ الَّذِينَ مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ وَالَّذِينَ لَمْ يَبْلُغُوا الْحُلُمَ مِنكُمْ ثَلَاثَ مَرَّاتٍ ۚ مِّن قَبْلِ صَلَاةِ الْفَجْرِ وَحِينَ تَضَعُونَ ثِيَابَكُم مِّنَ الظَّهِيرَةِ وَمِن بَعْدِ صَلَاةِ الْعِشَاءِ ۚ ثَلَاثُ عَوْرَاتٍ لَّكُمْ ۚ لَيْسَ عَلَيْكُمْ وَلَا عَلَيْهِمْ جُنَاحٌ بَعْدَهُنَّ ۚ طَوَّافُونَ عَلَيْكُم بَعْضُكُمْ عَلَىٰ بَعْضٍ ۚ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمُ الْآيَاتِ ۗ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ |58|24
ऐ ईमान लानेवालो! जो तुम्हारी मिल्कियत में हों और तुममें जो अभी युवावस्था को नहीं पहुँचे हैं, उनको चाहिए कि तीन समयों में तुमसे अनुमति लेकर तुम्हारे पास आएँ: प्रभात काल की नमाज़ से पहले और जब दोपहर को तुम (आराम के लिए) अपने कपड़े उतार रखते हो और रात्रि की नमाज़ के पश्चात - ये तीन समय तुम्हारे लिए परदे के हैं। इनके पश्चात न तो तुमपर कोई गुनाह है और न उनपर। वे तुम्हारे पास अधिक चक्कर लगाते हैं। तुम्हारे ही कुछ अंश परस्पर कुछ अंश के पास आकर मिलते हैं। इस प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतों को स्पष्ट करता है। अल्लाह भली-भाँति जाननेवाला, तत्वदर्शी है।
وَإِذَا بَلَغَ الْأَطْفَالُ مِنكُمُ الْحُلُمَ فَلْيَسْتَأْذِنُوا كَمَا اسْتَأْذَنَ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ ۚ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمْ آيَاتِهِ ۗ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ |59|24
और जब तुममें से बच्चे युवावस्था को पहुँच जाएँ तो उन्हें चाहिए कि अनुमति ले लिया करें जैसे उनसे पहले लोग अनुमति लेते रहे हैं। इस प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतों को स्पष्ट करता है। अल्लाह भली-भाँति जाननेवाला, तत्वदर्शी है।
وَالْقَوَاعِدُ مِنَ النِّسَاءِ اللَّاتِي لَا يَرْجُونَ نِكَاحًا فَلَيْسَ عَلَيْهِنَّ جُنَاحٌ أَن يَضَعْنَ ثِيَابَهُنَّ غَيْرَ مُتَبَرِّجَاتٍ بِزِينَةٍ ۖ وَأَن يَسْتَعْفِفْنَ خَيْرٌ لَّهُنَّ ۗ وَاللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ |60|24
जो स्त्रियाँ युवावस्था से गुज़रकर बैठ चुकी हों, जिन्हें विवाह की आशा न रह गई हो, उनपर कोई दोष नहीं कि वे अपने कपड़े (चादरें) उतारकर रख दें जबकि वे श्रृंगार का प्रदर्शन करनेवाली न हों। फिर भी वे इससे बचें तो उनके लिए अधिक अच्छा है। अल्लाह भली-भाँति सुनता, जानता है।
لَّيْسَ عَلَى الْأَعْمَىٰ حَرَجٌ وَلَا عَلَى الْأَعْرَجِ حَرَجٌ وَلَا عَلَى الْمَرِيضِ حَرَجٌ وَلَا عَلَىٰ أَنفُسِكُمْ أَن تَأْكُلُوا مِن بُيُوتِكُمْ أَوْ بُيُوتِ آبَائِكُمْ أَوْ بُيُوتِ أُمَّهَاتِكُمْ أَوْ بُيُوتِ إِخْوَانِكُمْ أَوْ بُيُوتِ أَخَوَاتِكُمْ أَوْ بُيُوتِ أَعْمَامِكُمْ أَوْ بُيُوتِ عَمَّاتِكُمْ أَوْ بُيُوتِ أَخْوَالِكُمْ أَوْ بُيُوتِ خَالَاتِكُمْ أَوْ مَا مَلَكْتُم مَّفَاتِحَهُ أَوْ صَدِيقِكُمْ ۚ لَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ أَن تَأْكُلُوا جَمِيعًا أَوْ أَشْتَاتًا ۚ فَإِذَا دَخَلْتُم بُيُوتًا فَسَلِّمُوا عَلَىٰ أَنفُسِكُمْ تَحِيَّةً مِّنْ عِندِ اللَّهِ مُبَارَكَةً طَيِّبَةً ۚ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمُ الْآيَاتِ لَعَلَّكُمْ تَعْقِلُونَ |61|24
न अंधे के लिए कोई हरज है, न लँगड़े के लिए कोई हरज है और न रोगी के लिए कोई हरज है और न तुम्हारे अपने लिए इस बात में कि तुम अपने घरों से खाओ या अपने बापों के घरों से या अपनी माँओ के घरों से या अपने भाइयों के घरों से या अपनी बहनों के घरों से या अपने चाचाओं के घरों से या अपनी फूफियों (बुआओं) के घरों से या अपने मामाओं के घरों से या अपनी ख़ालाओं के घरों से या जिसकी कुंजियों के मालिक हुए हो या अपने मित्र के यहाँ। इसमें तुम्हारे लिए कोई हरज नहीं कि तुम मिलकर खाओ या अलग-अलग। हाँ, अलबत्ता जब घरों में जाया करो तो अपने लोगों को सलाम किया करो, अभिवादन अल्लाह की ओर से नियत किया हुआ, बरकतवाला और अत्यधिक पाक। इस प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतों को स्पष्ट करता है, ताकि तुम बुद्धि से काम लो।
إِنَّمَا الْمُؤْمِنُونَ الَّذِينَ آمَنُوا بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ وَإِذَا كَانُوا مَعَهُ عَلَىٰ أَمْرٍ جَامِعٍ لَّمْ يَذْهَبُوا حَتَّىٰ يَسْتَأْذِنُوهُ ۚ إِنَّ الَّذِينَ يَسْتَأْذِنُونَكَ أُولَٰئِكَ الَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ ۚ فَإِذَا اسْتَأْذَنُوكَ لِبَعْضِ شَأْنِهِمْ فَأْذَن لِّمَن شِئْتَ مِنْهُمْ وَاسْتَغْفِرْ لَهُمُ اللَّهَ ۚ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ |62|24
मोमिन तो बस वही हैं जो अल्लाह और उसके रसूल पर पक्का ईमान रखते हैं। और जब किसी सामूहिक मामले के लिए उसके साथ हों तो चले न जाएँ जब तक कि उससे अनुमति न प्राप्त कर लें। (ऐ नबी!) जो लोग (आवश्यकता पड़ने पर) तुमसे अनुमति ले लेते हैं, वही लोग अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान रखते हैं, तो जब वे अपने किसी काम के लिए अनुमति चाहें तो उनमें से जिसको चाहो अनुमति दे दिया करो, और उन लोगों के लिए अल्लाह से क्षमा की प्रार्थना किया करो। निस्संदेह अल्लाह बहुत क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है।
لَّا تَجْعَلُوا دُعَاءَ الرَّسُولِ بَيْنَكُمْ كَدُعَاءِ بَعْضِكُم بَعْضًا ۚ قَدْ يَعْلَمُ اللَّهُ الَّذِينَ يَتَسَلَّلُونَ مِنكُمْ لِوَاذًا ۚ فَلْيَحْذَرِ الَّذِينَ يُخَالِفُونَ عَنْ أَمْرِهِ أَن تُصِيبَهُمْ فِتْنَةٌ أَوْ يُصِيبَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ |63|24
अपने बीच रसूल के बुलाने को तुम आपस में एक-दूसरे जैसा बुलाना न समझना। अल्लाह उन लोगों को भली-भाँति जानता है जो तुममें से ऐसे हैं कि (एक-दूसरे की) आड़ लेकर चुपके से खिसक जाते हैं। अतः उनको, जो उसके आदेश की अवहेलना करते हैं, डरना चाहिए कि कहीं ऐसा न हो कि उनपर कोई आज़माइश आ पड़े या उनपर कोई दुखद यातना आ जाए।
أَلَا إِنَّ لِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۖ قَدْ يَعْلَمُ مَا أَنتُمْ عَلَيْهِ وَيَوْمَ يُرْجَعُونَ إِلَيْهِ فَيُنَبِّئُهُم بِمَا عَمِلُوا ۗ وَاللَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ |64|24
सुन लो! आकाशों और धरती में जो कुछ भी है, अल्लाह का है। वह जानता है तुम जिस (नीति) पर हो। और जिस दिन वे उसकी ओर पलटेंगे, तो जो कुछ उन्होंने किया होगा, वह उन्हें बता देगा। अल्लाह तो हर चीज़ को जानता है।