وَمِنَ النَّاسِ مَن يَقُولُ آمَنَّا بِاللَّهِ فَإِذَا أُوذِيَ فِي اللَّهِ جَعَلَ فِتْنَةَ النَّاسِ كَعَذَابِ اللَّهِ وَلَئِن جَاءَ نَصْرٌ مِّن رَّبِّكَ لَيَقُولُنَّ إِنَّا كُنَّا مَعَكُمْ ۚ أَوَلَيْسَ اللَّهُ بِأَعْلَمَ بِمَا فِي صُدُورِ الْعَالَمِينَ |10|29
लोगों में ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि "हम अल्लाह पर ईमान लाए," किन्तु जब अल्लाह के मामले में वे सताए गए तो उन्होंने लोगों की ओर से आई हुई आज़माइश को अल्लाह की यातना जैसी समझ लिया। अब यदि तेरे रब की ओर से सहायता पहुँच गई तो कहेंगे, "हम तो तुम्हारे साथ थे।" क्या जो कुछ दुनियावालों के सीनों में है उसे अल्लाह भली-भाँति नहीं जानता?
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