कुरान हिंदी में

कुरआन आपके लिए

आम तौर से समझा जाता है कि कुरआन सिर्फ मुसलमानों के लिए है। जबकि कुरआन खुद इस सच्चाई का ऐलान करता है कि ‘‘ यह एक पैगाम है तमाम इंसानो के लिए और इसलिए भेजा गया है कि उनको (यानी तमाम इंसानो को) इसके जरिये से खबरदार कर दिया जाए और वे जान ले कि हकीकत में खुदा बस एक ही है और जो बुद्धि रखते है वे होश में आ जाये। ’’(कुरआन, 6:90)
इस ऐलान से यह गलतफहमी तो दूर हो ही जानी चाहिए कि ‘कुरआन सिर्फ मुसलमानो के लिए है।’ वैसे ही हम देखे जिस चीज को हम ईश्वर की ओर से होने का दावा करते है व तमाम इनसानो के लिए ही होती है। जैसे सूरज, चाॅद, सितारे, हवा इत्यादि। जब यह दावा नही किया जा सकता है कि इन सब चीजों पर किसी का एकाधिकार है तो यह कैसे स्वीकार किया जा सकता है कि खुदा की तरफ से नाजिल कुरआन पर किसी का एकाधिकार है या यह किसी खास जाति या कौम के लिए है।

•    पूर्ण सुरक्षित और सत्यताओं को
•    पुष्टि करने वाला ग्रन्थ

कुरआन की खूबी यह है कि वह इनसानों की काट-छांट से सुरक्षित है। इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी खुद ईश्वर ने ली है (कुरआन, 15:9)। कुरआन के अलावा कोई और किताब ऐसी नही है जो अपनी सुरक्षा की इस तरह गारंटी देती हो। चूकि पूर्ण रूप से सुरक्षित है इसलिए इसको तमाम बाते सत्य पर आधारित है और पिछली किताबो में मौजूद सत्यताओं की पुष्टि करती है, (कुरआन, 2:91, 3:3, 5:48, 35:31)। इस आधार पर पिछली किताबों की अब वही बाते सत्य है जिनकी कुरआन पुष्टि करता है। अतः कुरआन का अध्ययन वास्तव में सार्वभौमिक सत्यों का अध्ययन है।


•    आवश्यकताओं की पूर्ति
•    समस्याओं का समाधान

कुरआन का दावा है कि यह इनसान की तमाम बुनियादी जरूरतों की पूर्ति और समस्याओ का समाधान प्रस्तुत करता है। कुरआन के इस दावे पर यदि गौर किया जाए तो मालूम होगा कि इनसान को बहुत-सी बुनियादी जरूरते और समस्याऐ ऐसी है जो भौतिकता से पूरे अर्थात आध्यात्मिक या नैतिक प्रकार की है। जैसे इनसान के चरित्र को सच्चाई, ईमानदारी, वफादारी परोपकार और ईश-परायणता आदि की जरूरत होती है। यही नैतिक मूल्य है जो इनसान को जानवर से उच्च और श्रेष्ठ बनाते है। इसी तरह इनसान को कुछ सामाजिक समस्याए है जो अपना हल चाहती है, जैसे हिंसा और अराजकता, अत्याचार और भ्रष्टाचार, उॅच-नीच और छुआछूत बच्चो और महिलाओं का शोषण इत्यादि।

हम सब का तजरिबा है कि जब विभिन्न कारणों से उपरोक्त नैतिक मूल्यो या मानवीय गुणो में गिरावट आती है तो इंसान का आध्यात्मक (रूहानी) जरूरतों को पूर्ति मुश्किल ही नही, नामुम्किन हो जाती है। फिर दुख, परेशानीयां और नाउम्मीदियां इनसान को घेर लेती है। फिर ईश्वर-विहीन(मबनसंत) व्यवस्था अपनी विधायिका न्यायपालिका और प्रशासन तन्त्र की तमाम कोशिशो के बावजूद हमारी जरूरतों को पूरा करने और समस्याओं को हल करने में बेबस और नाकाम होकर रह जाती है।

कुरआन की खूबी यह है कि यह एक तरफ तो हमारी तमाम आध्यात्मिक और नैतिक को पूरी करता है और दूसरी तरफ मजबूत बुनियादो पर हमारी तमाम सामाजिक समस्याओ का हल भी पेश करता है।
यदि हम कुरआन का अध्ययन करे तो मालूम होगा कि इसका केन्द्रीय विषय इनसान है। यह हर मामले मे, हर तरह के हालात में और जीवन के हर क्षेत्र में इनसान का मागदर्शन करता है। यह बताता है कि ईश्वर और उसके गुणो को न जानना वास्तव में खुद अपने-आपको न जानना है। ईश्वर और मनुष्य के बीच सम्बन्ध मजबूत न होने का ही नतीजा है कि आज पूरे समाज में अशान्ति फैली हुई है। देश में फैले भ्रष्टाचार, अत्याचार, चरत्रहीनता और यौन-अराजकता आदि समस्याओ से


चाहे-अन चाहे कुप्रभावित है। कुरआन बताता है कि ईश्वर ने इनसान को जीवन यूं ही गफलत में रहकर गुजार देने के लिए नही दिया है बल्कि इसलिए दिया है कि वह यह देखे कि उनमें बेहतरीन अमल करने वाला और ईश्वर के मार्गदर्शन के अनुसार जीवन व्यतीत करनेवाला कौन है? (कुरआन, 67:2)। वह इनसान को सचेत करता है कि ईश्वर ने इनसान के कामों पर नजर रखने के लिए पवित्रात्मा फरिश्ते तैनात कर रखे हैं जो हर पल का रिकार्ड तैयार कर रहे है (कुरआन, 82:11)। फिर कियामत के दिन उसको दिखा दिया जाएगा कि उसने दुनिया में रहकर कैसे अमल किए। यदि उसने कण भर भी कोई नेकी की होगी वह भी उसे दिखा दी जायेगी और यदि कण भर भी उसने कोई बुराई की होगी वह भी उसे दिखा दी जाएगी (कुरआन, 99:8)। यही वह धारणा है जो इनसान को बुराई और हर प्रकार के भ्रष्टाचार से रोक सकती है। अतः कहा जा सकता है कि कुरआन एक ऐसा दीप है जो इनसान को अन्धकार से निकालकर प्रकाश में ला सकता है, इनसान को दुर्दशा और पतन की हालत से निकालकर मानवता के उच्च शिखर पर बैठा सकता है।

तो आइए अपने जीवन को कुरआन के प्रकाश से प्रकाशित कीजिए यह कुरआन आप के लिए है।




क्या कहते हैं विद्वान
कुरआन के बारे में:

‘‘ कुरआन गैर-मुस्लिमो के प्रति उदारता दिखाना सिखाता है। मानव-जाति की सेवा उसकी शिक्षा का सार है।’’
श्रीमती सरोजनी नायडू

‘‘ कुरआन की शिक्षाएॅ बड़ी आसान, सरल और मानव-प्रकृति के अनुकूल है। एक अत्यंत पक्षपाती मनुष्य भी उसकी शिक्षों में कोई ऐसा ऐब नही बतला सकता, जो संस्कृति व सभ्यता के स्तर से गिरा हुआ हो।’’
पंडित शान्ता राम, बी0ए0
‘‘ कुरआन एक आसान और सब की समझ में आनेवाला धर्म-ग्रंथ है। यह ग्रन्थ ऐसे समय में दुनिया में प्रस्तुत किया गया, जबकि चारों ओर तरह-तरह की गुमराहियां फैली हुई थी। मानवता, सज्जनता और संस्कृति व सभ्यता को कोई जानता न था। हर ओर अशान्ति और बेचैनी का दौर-दौरा था। कुरआन ने अपनी शिक्षाओं से इनसान के दिलों में प्रेम-भावनाएं पैदा की और दुनिया का काया पलट दी। बेचैनी और बदअमनी के बजाए अम्न व सुकून का अपार समुद्र लहरा दिया । जुल्म व ज्यादती, निष्ठा और प्रेम में बदल गई और गुमराह सीधे रास्ते पर आ गए।’’
थामस  कारलायल