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अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
عَبَسَ وَتَوَلَّىٰ |1|80

 उसने त्योरी चढ़ाई और मुँह फेर लिया,
أَن جَاءَهُ الْأَعْمَىٰ |2|80
  इस कारण कि उसके पास अन्धा आ गया।
وَمَا يُدْرِيكَ لَعَلَّهُ يَزَّكَّىٰ |3|80
और तुझे क्या मालूम शायद वह स्वयं को सँवारता-निखारता और आत्मिक विकास प्राप्त करता हो।
أَوْ يَذَّكَّرُ فَتَنفَعَهُ الذِّكْرَىٰ |4|80
या नसीहत हासिल करता हो तो नसीहत उसके लिए लाभदायक हो?
أَمَّا مَنِ اسْتَغْنَىٰ |5|80
रहा वह व्यक्ति जो बेपरवाही करता है,
فَأَنتَ لَهُ تَصَدَّىٰ |6|80
तू उसके पीछे पड़ा है -
وَمَا عَلَيْكَ أَلَّا يَزَّكَّىٰ |7|80
हालाँकि वह अपने को न निखारे और चरित्रवान न हो तो तुझपर कोई ज़िम्मेदारी नहीं आती -
وَأَمَّا مَن جَاءَكَ يَسْعَىٰ |8|80
और रहा वह व्यक्ति जो स्वयं ही तेरे पास दौड़ता हुआ आया,
وَهُوَ يَخْشَىٰ |9|80
  और वह डरता भी है,
فَأَنتَ عَنْهُ تَلَهَّىٰ |10|80
तो तू उससे बेपरवाही करता है।
كَلَّا إِنَّهَا تَذْكِرَةٌ |11|80
  कदापि नहीं, वे (आयतें) नसीहत और अनुस्मारक हैं -
فَمَن شَاءَ ذَكَرَهُ |12|80
तो जो चाहे उसे याददिहानी हासिल कर ले -
فِي صُحُفٍ مُّكَرَّمَةٍ |13|80
  प्रतिष्ठित, उच्च,
مَّرْفُوعَةٍ مُّطَهَّرَةٍ |14|80
पवित्र पन्नों में अंकित हैं,
بِأَيْدِي سَفَرَةٍ |15|80
  ऐसे कातिबों के हाथों में रहा करते हैं।
كِرَامٍ بَرَرَةٍ |16|80
जो प्रतिष्ठित और नेक हैं।
قُتِلَ الْإِنسَانُ مَا أَكْفَرَهُ |17|80
विनष्ट हुआ मनुष्य! कैसा अकृतज्ञ है!
مِنْ أَيِّ شَيْءٍ خَلَقَهُ |18|80
  उसको किस चीज़ से पैदा किया?
مِن نُّطْفَةٍ خَلَقَهُ فَقَدَّرَهُ |19|80
तनिक-सी बूँद से उसको पैदा किया, तो उसके लिए एक अंदाज़ा ठहराया,
ثُمَّ السَّبِيلَ يَسَّرَهُ |20|80
फिर मार्ग को देखो, उसे सुगम कर दिया,
ثُمَّ أَمَاتَهُ فَأَقْبَرَهُ |21|80
फिर उसे मृत्यु दी और क़ब्र में उसे रखवाया,
ثُمَّ إِذَا شَاءَ أَنشَرَهُ |22|80
फिर जब चाहेगा उसे (जीवित करके) उठा खड़ा करेगा। -
كَلَّا لَمَّا يَقْضِ مَا أَمَرَهُ |23|80
  कदापि नहीं, उसने उसको पूरा नहीं किया जिसका आदेश अल्लाह ने उसे दिया है।
فَلْيَنظُرِ الْإِنسَانُ إِلَىٰ طَعَامِهِ |24|80
अतः मनुष्य को चाहिए कि अपने भोजन को देखे,
أَنَّا صَبَبْنَا الْمَاءَ صَبًّا |25|80
  कि हमने ख़ूब पानी बरसाया,
ثُمَّ شَقَقْنَا الْأَرْضَ شَقًّا |26|80
  फिर धरती को विशेष रूप से फाड़ा,
فَأَنبَتْنَا فِيهَا حَبًّا |27|80
फिर हमने उसमें उगाए अनाज,
وَعِنَبًا وَقَضْبًا |28|80
और अंगूर और तरकारी,
وَزَيْتُونًا وَنَخْلًا |29|80
और ज़ैतून और खजूर,
وَحَدَائِقَ غُلْبًا |30|80
  और घने बाग़,
وَفَاكِهَةً وَأَبًّا |31|80
और मेवे और घास-चारा,
مَّتَاعًا لَّكُمْ وَلِأَنْعَامِكُمْ |32|80
तुम्हारे लिए और तुम्हारे चौपायों के लिेए जीवन-सामग्री के रूप में।
فَإِذَا جَاءَتِ الصَّاخَّةُ |33|80
फिर जब वह बहरा कर देनेवाली प्रचंड आवाज़ आएगी,
يَوْمَ يَفِرُّ الْمَرْءُ مِنْ أَخِيهِ |34|80
  जिस दिन आदमी भागेगा अपने भाई से,
وَأُمِّهِ وَأَبِيهِ |35|80
  और अपनी माँ और अपने बाप से,
وَصَاحِبَتِهِ وَبَنِيهِ |36|80
  और अपनी पत्नी और अपने बेटों से।
لِكُلِّ امْرِئٍ مِّنْهُمْ يَوْمَئِذٍ شَأْنٌ يُغْنِيهِ |37|80
उनमें से प्रत्येक व्यक्ति को उस दिन ऐसी पड़ी होगी जो उसे दूसरों से बेपरवाह कर देगी।
وُجُوهٌ يَوْمَئِذٍ مُّسْفِرَةٌ |38|80
  कितने ही चेहरे उस दिन रौशन होंगे,
ضَاحِكَةٌ مُّسْتَبْشِرَةٌ |39|80
  हँसते, प्रफुल्लित
وَوُجُوهٌ يَوْمَئِذٍ عَلَيْهَا غَبَرَةٌ |40|80
और कितने ही चेहरे होंगे जिनपर उस दिन धूल पड़ी होगी,
تَرْهَقُهَا قَتَرَةٌ |41|80
  उनपर कलौंस छा रही होगी।
أُولَٰئِكَ هُمُ الْكَفَرَةُ الْفَجَرَةُ |42|80
  वही होंगे इनकार करनेवाले दुराचारी लोग!