logo
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
وَالنَّازِعَاتِ غَرْقًا |1|79
गवाह हैं वे (हवाएँ) जो ज़ोर से उखाड़ फैंकें,
وَالنَّاشِطَاتِ نَشْطًا |2|79
और गवाह हैं वे (हवाएँ) जो नर्मी के साथ चलें,
وَالسَّابِحَاتِ سَبْحًا |3|79
और गवाह हैं वे जो वायुमंडल में तैरें,
فَالسَّابِقَاتِ سَبْقًا |4|79
फिर एक-दूसरे से अग्रसर हों,
فَالْمُدَبِّرَاتِ أَمْرًا |5|79
और मामले की तदबीर करें।
يَوْمَ تَرْجُفُ الرَّاجِفَةُ |6|79
जिस दिन हिला डालेगी हिला डालनेवाली घटना,
تَتْبَعُهَا الرَّادِفَةُ |7|79
उसके पीछे घटित होगी दूसरी (घटना)।
قُلُوبٌ يَوْمَئِذٍ وَاجِفَةٌ |8|79
कितने ही दिल उस दिन काँप रहे होंगे,
أَبْصَارُهَا خَاشِعَةٌ |9|79
उनकी निगाहें झुकी होंगी।
يَقُولُونَ أَإِنَّا لَمَرْدُودُونَ فِي الْحَافِرَةِ |10|79
वे कहते हैं, "क्या वास्तव में हम पहली हालत में फिर लौटाए जाएँगे?
أَإِذَا كُنَّا عِظَامًا نَّخِرَةً |11|79
क्या जब हम खोखली गली हुई हड्डियाँ हो चुके होंगे?"
قَالُوا تِلْكَ إِذًا كَرَّةٌ خَاسِرَةٌ |12|79
वे कहते हैं, "तब तो यह लौटना बड़े ही घाटे का होगा।"
فَإِنَّمَا هِيَ زَجْرَةٌ وَاحِدَةٌ |13|79
वह तो बस एक ही झिड़की होगी,
فَإِذَا هُم بِالسَّاهِرَةِ |14|79
फिर क्या देखेंगे कि वे एक समतल मैदान में उपस्थित हैं।
هَلْ أَتَاكَ حَدِيثُ مُوسَىٰ |15|79
क्या तुम्हें मूसा की ख़बर पहुँची है?
إِذْ نَادَاهُ رَبُّهُ بِالْوَادِ الْمُقَدَّسِ طُوًى |16|79
जबकि उसके रब ने पवित्र घाटी 'तुवा' में उसे पुकारा था
اذْهَبْ إِلَىٰ فِرْعَوْنَ إِنَّهُ طَغَىٰ |17|79
कि "फ़िरऔन के पास जाओ, उसने बहुत सिर उठा रखा है।
فَقُلْ هَل لَّكَ إِلَىٰ أَن تَزَكَّىٰ |18|79
और कहो, क्या तू यह चाहता है कि स्वयं को पाक-साफ़ कर ले,
وَأَهْدِيَكَ إِلَىٰ رَبِّكَ فَتَخْشَىٰ |19|79
और मैं तेरे रब की ओर तेरा मार्गदर्शन करूँ कि तु (उससे) डरे?"
فَأَرَاهُ الْآيَةَ الْكُبْرَىٰ |20|79
फिर उसने (मूसा ने) उसको बड़ी निशानी दिखाई,
فَكَذَّبَ وَعَصَىٰ |21|79
किन्तु उसने झुठला दिया और कहा न माना,
ثُمَّ أَدْبَرَ يَسْعَىٰ |22|79
फिर सक्रियता दिखाते हुए पलटा,
فَحَشَرَ فَنَادَىٰ |23|79
फिर (लोगों को) एकत्र किया और पुकारकर कहा,
فَقَالَ أَنَا رَبُّكُمُ الْأَعْلَىٰ |24|79
"मैं तुम्हारा उच्चकोटि का स्वामी हूँ!"
فَأَخَذَهُ اللَّهُ نَكَالَ الْآخِرَةِ وَالْأُولَىٰ |25|79
अन्ततः अल्लाह ने उसे आख़िरत और दुनिया की शिक्षाप्रद यातना में पकड़ लिया।
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَعِبْرَةً لِّمَن يَخْشَىٰ |26|79
निस्संदेह इसमें उस व्यक्ति के लिए बड़ी शिक्षा है जो डरे!
أَأَنتُمْ أَشَدُّ خَلْقًا أَمِ السَّمَاءُ ۚ بَنَاهَا |27|79
क्या तुम्हें पैदा करना अधिक कठिन कार्य है या आकाश को? अल्लाह ने उसे बनाया,
رَفَعَ سَمْكَهَا فَسَوَّاهَا |28|79
उसकी ऊँचाई को ख़ूब ऊँचा करके उसे ठीक-ठाक किया;
وَأَغْطَشَ لَيْلَهَا وَأَخْرَجَ ضُحَاهَا |29|79
और उसकी रात को अन्धकारमय बनाया और उसका दिवस-प्रकाश प्रकट किया।
وَالْأَرْضَ بَعْدَ ذَٰلِكَ دَحَاهَا |30|79
और धरती को देखो! इसके पश्चात उसे फैलाया;
أَخْرَجَ مِنْهَا مَاءَهَا وَمَرْعَاهَا |31|79
उसमें से उसका पानी और उसका चारा निकाला।
وَالْجِبَالَ أَرْسَاهَا |32|79
और पहाड़ों को देखो! उन्हें उस (धरती) में जमा दिया-
مَتَاعًا لَّكُمْ وَلِأَنْعَامِكُمْ |33|79
तुम्हारे लिए और तुम्हारे मवेशियों के लिए जीवन-सामग्री के रूप में।
فَإِذَا جَاءَتِ الطَّامَّةُ الْكُبْرَىٰ |34|79
फिर जब वह महाविपदा आएगी,
يَوْمَ يَتَذَكَّرُ الْإِنسَانُ مَا سَعَىٰ |35|79
उस दिन मनुष्य जो कुछ भी उसने प्रयास किया होगा उसे याद करेगा।
وَبُرِّزَتِ الْجَحِيمُ لِمَن يَرَىٰ |36|79
और भड़कती आग (जहन्नम) देखने वालों के लिए खोल दी जाएगी।
فَأَمَّا مَن طَغَىٰ |37|79
तो जिस किसी ने सरकशी की
وَآثَرَ الْحَيَاةَ الدُّنْيَا |38|79
और सांसारिक जीवन को प्राथमिकता दी होगी,
فَإِنَّ الْجَحِيمَ هِيَ الْمَأْوَىٰ |39|79
तो निस्संदेह भड़कती आग ही उसका ठिकाना है।
وَأَمَّا مَنْ خَافَ مَقَامَ رَبِّهِ وَنَهَى النَّفْسَ عَنِ الْهَوَىٰ |40|79
और रहा वह व्यक्ति जिसने अपने रब के सामने खड़े होने का भय रखा और अपने जी को बुरी इच्छा से रोका,
فَإِنَّ الْجَنَّةَ هِيَ الْمَأْوَىٰ |41|79
तो जन्नत ही उसका ठिकाना है।
يَسْأَلُونَكَ عَنِ السَّاعَةِ أَيَّانَ مُرْسَاهَا |42|79
वे तुमसे उस घड़ी के विषय में पूछते हैं कि वह कब आकर ठहरेगी?
فِيمَ أَنتَ مِن ذِكْرَاهَا |43|79
उसके बयान करने से तुम्हारा क्या सम्बन्ध?
إِلَىٰ رَبِّكَ مُنتَهَاهَا |44|79
उसकी अन्तिम पहुँच तो तेरे रब से ही सम्बन्ध रखती है।
إِنَّمَا أَنتَ مُنذِرُ مَن يَخْشَاهَا |45|79
तुम तो बस उस व्यक्ति को सावधान करनेवाले हो जो उससे डरे।
كَأَنَّهُمْ يَوْمَ يَرَوْنَهَا لَمْ يَلْبَثُوا إِلَّا عَشِيَّةً أَوْ ضُحَاهَا |46|79
जिस दिन वे उसे देखेंगे तो (ऐसा लगेगा) मानो वे (दुनिया में) बस एक शाम या उसकी सुबह ही ठहरे हैं।