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अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
وَالْمُرْسَلَاتِ عُرْفًا |1|77
साक्षी हैं वे (हवाएँ) जिनकी चोटी छोड़ दी जाती है।
فَالْعَاصِفَاتِ عَصْفًا |2|77
फिर ख़ूब तेज़ हो जाती है,
وَالنَّاشِرَاتِ نَشْرًا |3|77
और (बादलों को) उठाकर फैलाती है,
فَالْفَارِقَاتِ فَرْقًا |4|77
फिर मामला करती है अलग-अलग,
فَالْمُلْقِيَاتِ ذِكْرًا |5|77
फिर पेश करती है याददिहानी
عُذْرًا أَوْ نُذْرًا |6|77
इल्ज़ाम उतारने या चेतावनी देने के लिए,
إِنَّمَا تُوعَدُونَ لَوَاقِعٌ |7|77
निस्संदेह जिसका वादा तुमसे किया जा रहा है वह निश्चिय ही घटित होकर रहेगा।
فَإِذَا النُّجُومُ طُمِسَتْ |8|77
अतः जब तारे विलुप्त (प्रकाशहीन) हो जाएँगे,
وَإِذَا السَّمَاءُ فُرِجَتْ |9|77
और जब आकाश फट जाएगा,
وَإِذَا الْجِبَالُ نُسِفَتْ |10|77
और जब पहाड़ चूर्ण-विचूर्ण होकर बिखर जाएँगे;
وَإِذَا الرُّسُلُ أُقِّتَتْ |11|77
और जब रसूलों का हाल यह होगा कि उन का समय नियत कर दिया गया होगा -
لِأَيِّ يَوْمٍ أُجِّلَتْ |12|77
किस दिन के लिए वे टाले गए हैं?
لِيَوْمِ الْفَصْلِ |13|77
फ़ैसले के दिन के लिए।
وَمَا أَدْرَاكَ مَا يَوْمُ الْفَصْلِ |14|77
और तुम्हें क्या मालूम कि वह फ़ैसले का दिन क्या है? -
وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِّلْمُكَذِّبِينَ |15|77
तबाही है उस दिन झुठलाने-वालों की!
أَلَمْ نُهْلِكِ الْأَوَّلِينَ |16|77
क्या ऐसा नहीं हुआ कि हमने पहलों को विनष्ट किया?
ثُمَّ نُتْبِعُهُمُ الْآخِرِينَ |17|77
फिर उन्हीं के पीछे बादवालों को भी लगाते रहे?
كَذَٰلِكَ نَفْعَلُ بِالْمُجْرِمِينَ |18|77
अपराधियों के साथ हम ऐसा ही करते हैं।
وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِّلْمُكَذِّبِينَ |19|77
तबाही है उस दिन झुठलानेवालों की!
أَلَمْ نَخْلُقكُّم مِّن مَّاءٍ مَّهِينٍ |20|77
क्या ऐसा नहीं है कि हमने तुम्हें तुच्छ जल से पैदा किया,
فَجَعَلْنَاهُ فِي قَرَارٍ مَّكِينٍ |21|77
फिर हमने उसे एक सुरक्षित टिकने की जगह में रखा,
إِلَىٰ قَدَرٍ مَّعْلُومٍ |22|77
एक ज्ञात और निश्चित अवधि तक?
فَقَدَرْنَا فَنِعْمَ الْقَادِرُونَ |23|77
फिर हमने अन्दाज़ा ठहराया, तो हम क्या ही अच्छा अन्दाज़ा ठहरानेवाले हैं।
وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِّلْمُكَذِّبِينَ |24|77
तबाही है उस दिन झुठलानेवालों की!
أَلَمْ نَجْعَلِ الْأَرْضَ كِفَاتًا |25|77
क्या ऐसा नहीं है कि हमने धरती को समेट रखनेवाली बनाया,
أَحْيَاءً وَأَمْوَاتًا |26|77
ज़िन्दों को भी और मुर्दों को भी,
وَجَعَلْنَا فِيهَا رَوَاسِيَ شَامِخَاتٍ وَأَسْقَيْنَاكُم مَّاءً فُرَاتًا |27|77
और उसमें ऊँचे-ऊँचे पहाड़ जमाए और तुम्हें मीठा पानी पिलाया?
وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِّلْمُكَذِّبِينَ |28|77
तबाही है उस दिन झुठलानेवालों की!
انطَلِقُوا إِلَىٰ مَا كُنتُم بِهِ تُكَذِّبُونَ |29|77
चलो उस चीज़ की ओर जिसे तुम झुठलाते रहे हो!
انطَلِقُوا إِلَىٰ ظِلٍّ ذِي ثَلَاثِ شُعَبٍ |30|77
चलो तीन शाखाओंवाली छाया की ओर,
لَّا ظَلِيلٍ وَلَا يُغْنِي مِنَ اللَّهَبِ |31|77
जिसमें न छाँव है और न वह अग्नि-ज्वाला से बचा सकती है।
إِنَّهَا تَرْمِي بِشَرَرٍ كَالْقَصْرِ |32|77
निस्संदेह वे (ज्वालाएँ) महल जैसी (ऊँची) चिंगारियाँ फेंकती हैं
كَأَنَّهُ جِمَالَتٌ صُفْرٌ |33|77
मानो वे पीले ऊँट हैं!
وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِّلْمُكَذِّبِينَ |34|77
तबाही है उस दिन झुठलानेवालों की!
هَٰذَا يَوْمُ لَا يَنطِقُونَ |35|77
यह वह दिन है कि वे कुछ बोल नहीं रहे हैं,
وَلَا يُؤْذَنُ لَهُمْ فَيَعْتَذِرُونَ |36|77
तो कोई उज़्र पेश करें, (बात यह है कि) उन्हें बोलने की अनुमति नहीं दी जा रही है।
وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِّلْمُكَذِّبِينَ |37|77
तबाही है उस दिन झुठलानेवालों की।
هَٰذَا يَوْمُ الْفَصْلِ ۖ جَمَعْنَاكُمْ وَالْأَوَّلِينَ |38|77
"यह फ़ैसले का दिन है, हमने तुम्हें भी और पहलों को भी इकट्ठा कर दिया।
فَإِن كَانَ لَكُمْ كَيْدٌ فَكِيدُونِ |39|77
अब यदि तुम्हारे पास कोई चाल है तो मेरे विरुद्ध चलो।"
وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِّلْمُكَذِّبِينَ |40|77
तबाही है उस दिन झुठलानेवालों की!
إِنَّ الْمُتَّقِينَ فِي ظِلَالٍ وَعُيُونٍ |41|77
निस्संदेह डर रखनेवाले छाँवों और स्रोतों में हैं,
وَفَوَاكِهَ مِمَّا يَشْتَهُونَ |42|77
और उन फलों के बीच जो वे चाहें।
كُلُوا وَاشْرَبُوا هَنِيئًا بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ |43|77
"खाओ-पियो मज़े से, उन कर्मों के बदले में जो तुम करते रहे हो।"
إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ |44|77
निश्चय ही उत्तमकारों को हम ऐसा ही बदला देते हैं।
وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِّلْمُكَذِّبِينَ |45|77
तबाही है उस दिन झुठलानेवालों की!
كُلُوا وَتَمَتَّعُوا قَلِيلًا إِنَّكُم مُّجْرِمُونَ |46|77
"खा लो और मज़े कर लो थोड़ा-सा, वास्तव में तुम अपराधी हो!"
وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِّلْمُكَذِّبِينَ |47|77
तबाही है उस दिन झुठलानेवालों की!
وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ ارْكَعُوا لَا يَرْكَعُونَ |48|77
जब उनसे कहा जाता है कि "झुको! तो नहीं झुकते।"
وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِّلْمُكَذِّبِينَ |49|77
तबाही है उस दिन झुठलानेवालों की!
فَبِأَيِّ حَدِيثٍ بَعْدَهُ يُؤْمِنُونَ |50|77
अब आख़िर इसके पश्चात किस वाणी पर वे ईमान लाएँगे?