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अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
لَا أُقْسِمُ بِيَوْمِ الْقِيَامَةِ |1|75
नहीं, मैं क़सम खाता हूँ क़ियामत के दिन की,
وَلَا أُقْسِمُ بِالنَّفْسِ اللَّوَّامَةِ |2|75
और नहीं! मैं क़सम खाता हूँ मलामत करनेवाली आत्मा की।
أَيَحْسَبُ الْإِنسَانُ أَلَّن نَّجْمَعَ عِظَامَهُ |3|75
क्या मनुष्य यह समझता है कि हम कदापि उसकी हड्डियों को एकत्र न करेंगे?
بَلَىٰ قَادِرِينَ عَلَىٰ أَن نُّسَوِّيَ بَنَانَهُ |4|75
क्यों नहीं, हम उसकी पोरों को ठीक-ठाक करने की सामर्थ्य रखते हैं।
بَلْ يُرِيدُ الْإِنسَانُ لِيَفْجُرَ أَمَامَهُ |5|75
बल्कि मनुष्य चाहता है कि अपने आगे ढिठाई करता रहे।
يَسْأَلُ أَيَّانَ يَوْمُ الْقِيَامَةِ |6|75
पूछता है, "आख़िर क़ियामत का दिन कब आएगा?"
فَإِذَا بَرِقَ الْبَصَرُ |7|75
तो जब निगाह चौंधिया जाएँगी,
وَخَسَفَ الْقَمَرُ |8|75
और चन्द्रमा को ग्रहण लग जाएगा,
وَجُمِعَ الشَّمْسُ وَالْقَمَرُ |9|75
और सूर्य और चन्द्रमा इकट्ठे कर दिए जाएँगे,
يَقُولُ الْإِنسَانُ يَوْمَئِذٍ أَيْنَ الْمَفَرُّ |10|75
उस दिन मनुष्य कहेगा, "कहाँ जाऊँ भागकर?"
كَلَّا لَا وَزَرَ |11|75
कुछ नहीं, कोई शरण-स्थल नहीं!
إِلَىٰ رَبِّكَ يَوْمَئِذٍ الْمُسْتَقَرُّ |12|75
उस दिन तुम्हारे रब ही की ओर जाकर ठहरना है।
يُنَبَّأُ الْإِنسَانُ يَوْمَئِذٍ بِمَا قَدَّمَ وَأَخَّرَ |13|75
उस दिन मनुष्य को बता दिया जाएगा जो कुछ उसने आगे बढ़ाया और पीछे टाला।
بَلِ الْإِنسَانُ عَلَىٰ نَفْسِهِ بَصِيرَةٌ |14|75
नहीं, बल्कि मनुष्य स्वयं अपने हाल पर निगाह रखता है,
وَلَوْ أَلْقَىٰ مَعَاذِيرَهُ |15|75
यद्यपि उसने अपने कितने ही बहाने पेश किए हों।
لَا تُحَرِّكْ بِهِ لِسَانَكَ لِتَعْجَلَ بِهِ |16|75
तू उसे शीघ्र पाने के लिए उसके प्रति अपनी ज़बान को न चला।
إِنَّ عَلَيْنَا جَمْعَهُ وَقُرْآنَهُ |17|75
हमारे ज़िम्मे है उसे एकत्र करना और उसका पढ़ाना,
فَإِذَا قَرَأْنَاهُ فَاتَّبِعْ قُرْآنَهُ |18|75
अतः जब हम उसे पढ़ें तो उसके पठन का अनुसरण कर,
ثُمَّ إِنَّ عَلَيْنَا بَيَانَهُ |19|75
फिर हमारे ज़िम्मे है उसका स्पष्टीकरण करना।
كَلَّا بَلْ تُحِبُّونَ الْعَاجِلَةَ |20|75
कुछ नहीं, बल्कि तुम लोग शीघ्र मिलनेवाली चीज़ (दुनिया) से प्रेम रखते हो,
وَتَذَرُونَ الْآخِرَةَ |21|75
और आख़िरत को छोड़ रहे हो।
وُجُوهٌ يَوْمَئِذٍ نَّاضِرَةٌ |22|75
कितने ही चेहरे उस दिन तरो ताज़ा और प्रफुल्लित होंगे,
إِلَىٰ رَبِّهَا نَاظِرَةٌ |23|75
अपने रब की ओर देख रहे होंगे।
وَوُجُوهٌ يَوْمَئِذٍ بَاسِرَةٌ |24|75
और कितने ही चेहरे उस दिन उदास और बिगड़े हुए होंगे,
تَظُنُّ أَن يُفْعَلَ بِهَا فَاقِرَةٌ |25|75
समझ रहे होंगे कि उनके साथ कमर तोड़ देनेवाला मामला किया जाएगा।
كَلَّا إِذَا بَلَغَتِ التَّرَاقِيَ |26|75
कुछ नहीं, जब प्राण कंठ को आ लगेंगे,
وَقِيلَ مَنْ ۜ رَاقٍ |27|75
और कहा जाएगा, "कौन हैं झाड़-फूँक करनेवाला?"
وَظَنَّ أَنَّهُ الْفِرَاقُ |28|75
और वह समझ लेगा कि वह जुदाई (का समय) है।
وَالْتَفَّتِ السَّاقُ بِالسَّاقِ |29|75
और पिंडली से पिंडली लिपट जाएगी,
إِلَىٰ رَبِّكَ يَوْمَئِذٍ الْمَسَاقُ |30|75
तुम्हारे रब की ओर उस दिन प्रस्थान होगा।
فَلَا صَدَّقَ وَلَا صَلَّىٰ |31|75
किन्तु उसने न तो सत्य माना और न नमाज़ अदा की,
وَلَٰكِن كَذَّبَ وَتَوَلَّىٰ |32|75
लेकिन झुठलाया और मुँह मोड़ा,
ثُمَّ ذَهَبَ إِلَىٰ أَهْلِهِ يَتَمَطَّىٰ |33|75
फिर अकड़ता हुआ अपने लोगों की ओर चल दिया।
أَوْلَىٰ لَكَ فَأَوْلَىٰ |34|75
अफ़सोस है तुझपर और अफ़सोस है!
ثُمَّ أَوْلَىٰ لَكَ فَأَوْلَىٰ |35|75
फिर अफ़सोस है तुझपर और अफ़सोस है!
أَيَحْسَبُ الْإِنسَانُ أَن يُتْرَكَ سُدًى |36|75
क्या मनुष्य समझता है कि वह यूँ ही स्वतंत्र छोड़ दिया जाएगा?
أَلَمْ يَكُ نُطْفَةً مِّن مَّنِيٍّ يُمْنَىٰ |37|75
क्या वह केवल टपकाए हुए वीर्य की एक बूँद न था?
ثُمَّ كَانَ عَلَقَةً فَخَلَقَ فَسَوَّىٰ |38|75
फिर वह रक्त की एक फुटकी हुआ, फिर अल्लाह ने उसे रूप दिया और उसके अंग-प्रत्यंग ठीक-ठाक किए।
فَجَعَلَ مِنْهُ الزَّوْجَيْنِ الذَّكَرَ وَالْأُنثَىٰ |39|75
और उसकी दो जातियाँ बनाईं - पुरुष और स्त्री।
أَلَيْسَ ذَٰلِكَ بِقَادِرٍ عَلَىٰ أَن يُحْيِيَ الْمَوْتَىٰ |40|75
क्या उसे यह सामर्थ्य प्राप्त नहीं कि वह मुर्दों को जीवित कर दे?