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46. अल-अहक़ाफ़ [ कुल आयतें - 35 ]
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अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
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حم |1|46
हा॰ मीम॰
تَنزِيلُ الْكِتَابِ مِنَ اللَّهِ الْعَزِيزِ الْحَكِيمِ |2|46
इस किताब का अवतरण अल्लाह की ओर से है, जो प्रभुत्वशाली, अत्यन्त तत्वदर्शी है।
مَا خَلَقْنَا السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا إِلَّا بِالْحَقِّ وَأَجَلٍ مُّسَمًّى ۚ وَالَّذِينَ كَفَرُوا عَمَّا أُنذِرُوا مُعْرِضُونَ |3|46
हमने आकाशों और धरती को और जो कुछ उन दोनों के मध्य है उसे केवल हक़ के साथ और एक नियत अवधि तक के लिए पैदा किया है। किन्तु जिन लोगों ने इनकार किया है, वे उस चीज़ को ध्यान में नहीं लाते हैं जिससे उन्हें सावधान किया गया है।
قُلْ أَرَأَيْتُم مَّا تَدْعُونَ مِن دُونِ اللَّهِ أَرُونِي مَاذَا خَلَقُوا مِنَ الْأَرْضِ أَمْ لَهُمْ شِرْكٌ فِي السَّمَاوَاتِ ۖ ائْتُونِي بِكِتَابٍ مِّن قَبْلِ هَٰذَا أَوْ أَثَارَةٍ مِّنْ عِلْمٍ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ |4|46
कहो, "क्या तुमने उनको देखा भी, जिन्हें तुम अल्लाह को छोड़कर पुकारते हो? मुझे दिखाओ उन्होंने धरती की चीज़ों में से क्या पैदा किया है या आकाशों में उनकी कोई साझेदारी है? मेरे पास इससे पहले की कोई किताब ले आओ या ज्ञान की कोई अवशेष बात ही, यदि तुम सच्चे हो।"
وَمَنْ أَضَلُّ مِمَّن يَدْعُو مِن دُونِ اللَّهِ مَن لَّا يَسْتَجِيبُ لَهُ إِلَىٰ يَوْمِ الْقِيَامَةِ وَهُمْ عَن دُعَائِهِمْ غَافِلُونَ |5|46
आख़़िर उस व्यक्ति से बढ़कर पथभ्रष्ट और कौन होगा, जो अल्लाह से हटकर उन्हें पुकारता हो जो क़ियामत के दिन तक उसकी पुकार को स्वीकार नहीं कर सकते, बल्कि वे तो उनकी पुकार से भी बेख़बर हैं;
وَإِذَا حُشِرَ النَّاسُ كَانُوا لَهُمْ أَعْدَاءً وَكَانُوا بِعِبَادَتِهِمْ كَافِرِينَ |6|46
और जब लोग इकट्ठे किए जाएँगे तो वे उनके शत्रु होंगे और उनकी बन्दगी का इनकार करेंगे।
وَإِذَا تُتْلَىٰ عَلَيْهِمْ آيَاتُنَا بَيِّنَاتٍ قَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لِلْحَقِّ لَمَّا جَاءَهُمْ هَٰذَا سِحْرٌ مُّبِينٌ |7|46
जब हमारी स्पष्ट आयतें उन्हें पढ़कर सुनाई जाती हैं तो वे लोग जिन्होंने इनकार किया, सत्य के विषय में, जबकि वह उनके पास आ गया, कहते हैं कि "यह तो खुला जादू है।"
أَمْ يَقُولُونَ افْتَرَاهُ ۖ قُلْ إِنِ افْتَرَيْتُهُ فَلَا تَمْلِكُونَ لِي مِنَ اللَّهِ شَيْئًا ۖ هُوَ أَعْلَمُ بِمَا تُفِيضُونَ فِيهِ ۖ كَفَىٰ بِهِ شَهِيدًا بَيْنِي وَبَيْنَكُمْ ۖ وَهُوَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ |8|46
(क्या ईमान लाने से उन्हें कोई चीज़ रोक रही है) या वे कहते हैं, "उसने इसे स्वयं ही घड़ लिया है?" कहो, "यदि मैंने इसे स्वयं घड़ा है तो अल्लाह के विरुद्ध मेरे लिए तुम कुछ भी अधिकार नहीं रखते। जिसके विषय में तुम बातें बनाने में लगे हो, वह उसे भली-भाँति जानता है। और वह मेरे और तुम्हारे बीच गवाह की हैसियत से काफ़ी है। और वही बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है।"
قُلْ مَا كُنتُ بِدْعًا مِّنَ الرُّسُلِ وَمَا أَدْرِي مَا يُفْعَلُ بِي وَلَا بِكُمْ ۖ إِنْ أَتَّبِعُ إِلَّا مَا يُوحَىٰ إِلَيَّ وَمَا أَنَا إِلَّا نَذِيرٌ مُّبِينٌ |9|46
कह दो, "मैं कोई पहला रसूल तो नहीं हूँ। और मैं नहीं जानता कि मेरे साथ क्या किया जाएगा और न यह कि तुम्हारे साथ क्या किया जाएगा। मैं तो बस उसी का अनुगामी हूँ, जिसकी प्रकाशना मेरी ओर की जाती है और मैं तो केवल एक स्पष्ट सावधान करनेवाला हूँ।"
قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِن كَانَ مِنْ عِندِ اللَّهِ وَكَفَرْتُم بِهِ وَشَهِدَ شَاهِدٌ مِّن بَنِي إِسْرَائِيلَ عَلَىٰ مِثْلِهِ فَآمَنَ وَاسْتَكْبَرْتُمْ ۖ إِنَّ اللَّهَ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ |10|46
कहो, "क्या तुमने सोचा भी (कि तुम्हारा क्या परिणाम होगा)? यदि वह (क़ुरआन) अल्लाह के यहाँ से हुआ और तुमने उसका इनकार कर दिया, हालाँकि इसराईल की सन्तान में से एक गवाह ने उसके एक भाग की गवाही भी दी। सो वह ईमान ले आया और तुम घमंड में पड़े रहे। अल्लाह तो ज़ालिम लोगों को मार्ग नहीं दिखाता।"
وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لِلَّذِينَ آمَنُوا لَوْ كَانَ خَيْرًا مَّا سَبَقُونَا إِلَيْهِ ۚ وَإِذْ لَمْ يَهْتَدُوا بِهِ فَسَيَقُولُونَ هَٰذَا إِفْكٌ قَدِيمٌ |11|46
जिन लोगों ने इनकार किया, वे ईमान लानेवालों के बारे में कहते हैं, "यदि वह अच्छा होता तो वे उसकी ओर (बढ़ने में) हमसे अग्रसर न रहते।" और जब उन्होंने उससे मार्ग ग्रहण नहीं किया तो अब अवश्य कहेंगे, "यह तो पुराना झूठ है!"
وَمِن قَبْلِهِ كِتَابُ مُوسَىٰ إِمَامًا وَرَحْمَةً ۚ وَهَٰذَا كِتَابٌ مُّصَدِّقٌ لِّسَانًا عَرَبِيًّا لِّيُنذِرَ الَّذِينَ ظَلَمُوا وَبُشْرَىٰ لِلْمُحْسِنِينَ |12|46
हालाँकि इससे पहले मूसा की किताब पथप्रदर्शक और दयालुता रही है। और यह किताब, जो अरबी भाषा में है, उसकी पुष्टि में है, ताकि उन लोगों को सचेत कर दे जिन्होंने ज़ु्ल्म किया और शुभ सूचना हो उत्तमकारों के लिए।
إِنَّ الَّذِينَ قَالُوا رَبُّنَا اللَّهُ ثُمَّ اسْتَقَامُوا فَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ |13|46
निश्चय ही जिन लोगों ने कहा, "हमारा रब अल्लाह है।" फिर वे उसपर जमे रहे, तो उन्हें न तो कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होंगे।
أُولَٰئِكَ أَصْحَابُ الْجَنَّةِ خَالِدِينَ فِيهَا جَزَاءً بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ |14|46
वही जन्नतवाले हैं, वहाँ वे सदैव रहेंगे उसके बदले में जो वे करते रहे हैं।
وَوَصَّيْنَا الْإِنسَانَ بِوَالِدَيْهِ إِحْسَانًا ۖ حَمَلَتْهُ أُمُّهُ كُرْهًا وَوَضَعَتْهُ كُرْهًا ۖ وَحَمْلُهُ وَفِصَالُهُ ثَلَاثُونَ شَهْرًا ۚ حَتَّىٰ إِذَا بَلَغَ أَشُدَّهُ وَبَلَغَ أَرْبَعِينَ سَنَةً قَالَ رَبِّ أَوْزِعْنِي أَنْ أَشْكُرَ نِعْمَتَكَ الَّتِي أَنْعَمْتَ عَلَيَّ وَعَلَىٰ وَالِدَيَّ وَأَنْ أَعْمَلَ صَالِحًا تَرْضَاهُ وَأَصْلِحْ لِي فِي ذُرِّيَّتِي ۖ إِنِّي تُبْتُ إِلَيْكَ وَإِنِّي مِنَ الْمُسْلِمِينَ |15|46
हमने मनुष्य को अपने माँ-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करने की ताकीद की। उसकी माँ ने उसे (पेट में) तकलीफ़ के साथ उठाए रखा और उसे जना भी तकलीफ़ के साथ। और उसके गर्भ की अवस्था में रहने और दूध छुड़ाने की अवधि तीस माह है, यहाँ तक कि जब वह अपनी पूरी शक्ति को पहुँचा और चालीस वर्ष का हुआ तो उसने कहा, "ऐ मेरे रब! मुझे सम्भाल कि मैं तेरी उस अनुकम्पा के प्रति कृतज्ञता दिखाऊँ, जो तूने मुझपर और मेरे माँ-बाप पर की है। और यह कि मैं ऐसा अच्छा कर्म करूँ जो तुझे प्रिय हो और मेरे लिए मेरी संतति में भलाई रख दे। मैं तेरे आगे तौबा करता हूँ और मैं मुस्लिम (आज्ञाकारी) हूँ।"
أُولَٰئِكَ الَّذِينَ نَتَقَبَّلُ عَنْهُمْ أَحْسَنَ مَا عَمِلُوا وَنَتَجَاوَزُ عَن سَيِّئَاتِهِمْ فِي أَصْحَابِ الْجَنَّةِ ۖ وَعْدَ الصِّدْقِ الَّذِي كَانُوا يُوعَدُونَ |16|46
ऐसे ही लोग हैं जिनसे हम अच्छे कर्म, जो उन्होंने किए होंगे, स्वीकार कर लेगें और उनकी बुराइयों को टाल जाएँगे। इस हाल में कि वे जन्नतवालों में होंगे, उस सच्चे वादे के अनुरूप जो उनसे किया जाता रहा है।
وَالَّذِي قَالَ لِوَالِدَيْهِ أُفٍّ لَّكُمَا أَتَعِدَانِنِي أَنْ أُخْرَجَ وَقَدْ خَلَتِ الْقُرُونُ مِن قَبْلِي وَهُمَا يَسْتَغِيثَانِ اللَّهَ وَيْلَكَ آمِنْ إِنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ فَيَقُولُ مَا هَٰذَا إِلَّا أَسَاطِيرُ الْأَوَّلِينَ |17|46
किन्तु वह व्यक्ति जिसने अपने माँ-बाप से कहा, "धिक है तुम पर! क्या तुम मुझे डराते हो कि मैं (क़ब्र से) निकाला जाऊँगा, हालाँकि मुझसे पहले कितनी ही नस्लें गुज़र चुकी हैं?" और वे दोनों अल्लाह से फ़रियाद करते हैं - "अफ़सोस है तुझपर! मान जा। निस्संदेह अल्लाह का वादा सच्चा है।" किन्तु वह कहता है, "ये तो बस पहले के लोगों की कहानियाँ हैं।"
أُولَٰئِكَ الَّذِينَ حَقَّ عَلَيْهِمُ الْقَوْلُ فِي أُمَمٍ قَدْ خَلَتْ مِن قَبْلِهِم مِّنَ الْجِنِّ وَالْإِنسِ ۖ إِنَّهُمْ كَانُوا خَاسِرِينَ |18|46
ऐसे ही लोग हैं जिनपर उन गरोहों के साथ यातना की बात सत्यापित होकर रही जो जिन्नों और मनुष्यों में से उनसे पहले गुज़र चुके हैं। निश्चय ही वे घाटे में रहे।
وَلِكُلٍّ دَرَجَاتٌ مِّمَّا عَمِلُوا ۖ وَلِيُوَفِّيَهُمْ أَعْمَالَهُمْ وَهُمْ لَا يُظْلَمُونَ |19|46
उनमें से प्रत्येक के दरजे उनके अपने किए हुए कर्मों के अनुसार होंगे (ताकि अल्लाह का वादा पूरा हो) और ताकि वह उन्हें उनके कर्मों का पूरा-पूरा बदला चुका दे और उनपर कदापि ज़ुल्म न होगा।
وَيَوْمَ يُعْرَضُ الَّذِينَ كَفَرُوا عَلَى النَّارِ أَذْهَبْتُمْ طَيِّبَاتِكُمْ فِي حَيَاتِكُمُ الدُّنْيَا وَاسْتَمْتَعْتُم بِهَا فَالْيَوْمَ تُجْزَوْنَ عَذَابَ الْهُونِ بِمَا كُنتُمْ تَسْتَكْبِرُونَ فِي الْأَرْضِ بِغَيْرِ الْحَقِّ وَبِمَا كُنتُمْ تَفْسُقُونَ |20|46
और याद करो जिस दिन वे लोग जिन्होंने इनकार किया, आग के सामने पेश किए जाएँगे। (कहा जाएगा), "तुम अपने सांसारिक जीवन में अच्छी रुचिकर चीज़ें नष्ट कर बैठे और उनका मज़ा ले चुके। अतः आज तुम्हें अपमानजनक यातना दी जाएगी, क्योंकि तुम धरती में बिना किसी हक़ के घमंड करते रहे और इसलिए कि तुम आज्ञा का उल्लंघन करते रहे।"
۞ وَاذْكُرْ أَخَا عَادٍ إِذْ أَنذَرَ قَوْمَهُ بِالْأَحْقَافِ وَقَدْ خَلَتِ النُّذُرُ مِن بَيْنِ يَدَيْهِ وَمِنْ خَلْفِهِ أَلَّا تَعْبُدُوا إِلَّا اللَّهَ إِنِّي أَخَافُ عَلَيْكُمْ عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيمٍ |21|46
आद के भाई को याद करो, जबकि उसने अपनी क़ौम के लोगों को अहक़ाफ़ में सावधान किया- और उसके आगे और पीछे भी सावधान करनेवाले गुज़र चुके थे - कि, "अल्लाह के सिवा किसी की बन्दगी न करो। मुझे तुम्हारे बारे में एक बड़े दिन की यातना का भय है।"
قَالُوا أَجِئْتَنَا لِتَأْفِكَنَا عَنْ آلِهَتِنَا فَأْتِنَا بِمَا تَعِدُنَا إِن كُنتَ مِنَ الصَّادِقِينَ |22|46
उन्होंने कहा, "क्या तू हमारे पास इसलिए आया है कि झूठ बोलकर हमको हमारे अपने उपास्यों से विमुख कर दे? अच्छा, तो हमपर ले आ, जिसकी तू हमें धमकी देता है, यदि तू सच्चा है।"
قَالَ إِنَّمَا الْعِلْمُ عِندَ اللَّهِ وَأُبَلِّغُكُم مَّا أُرْسِلْتُ بِهِ وَلَٰكِنِّي أَرَاكُمْ قَوْمًا تَجْهَلُونَ |23|46
उसने कहा, "ज्ञान तो अल्लाह ही के पास है (कि वह कब यातना लाएगा)। और मैं तो तुम्हें वह संदेश पहुँचा रहा हूँ जो मुझे देकर भेजा गया है। किन्तु मैं तुम्हें देख रहा हूँ कि तुम अज्ञानता से काम ले रहे हो।"
فَلَمَّا رَأَوْهُ عَارِضًا مُّسْتَقْبِلَ أَوْدِيَتِهِمْ قَالُوا هَٰذَا عَارِضٌ مُّمْطِرُنَا ۚ بَلْ هُوَ مَا اسْتَعْجَلْتُم بِهِ ۖ رِيحٌ فِيهَا عَذَابٌ أَلِيمٌ |24|46
फिर जब उन्होंने उसे बादल के रूप में देखा, जिसका रुख़ उनकी घाटियों की ओर था, तो वे कहने लगे, "यह बादल है जो हमपर बरसनेवाला है!' "नहीं, बल्कि यह तो वही चीज़ है जिसके लिए तुमने जल्दी मचा रखी थी। - एक वायु है जिसमें दुखद यातना है।
تُدَمِّرُ كُلَّ شَيْءٍ بِأَمْرِ رَبِّهَا فَأَصْبَحُوا لَا يُرَىٰ إِلَّا مَسَاكِنُهُمْ ۚ كَذَٰلِكَ نَجْزِي الْقَوْمَ الْمُجْرِمِينَ |25|46
हर चीज़ को अपने रब के आदेश से विनष्ट कर देगी।" अन्ततः वे ऐसे हो गए कि उनके रहने की जगहों के सिवा कुछ नज़र न आता था। अपराधी लोगों को हम इसी तरह बदला देते हैं।
وَلَقَدْ مَكَّنَّاهُمْ فِيمَا إِن مَّكَّنَّاكُمْ فِيهِ وَجَعَلْنَا لَهُمْ سَمْعًا وَأَبْصَارًا وَأَفْئِدَةً فَمَا أَغْنَىٰ عَنْهُمْ سَمْعُهُمْ وَلَا أَبْصَارُهُمْ وَلَا أَفْئِدَتُهُم مِّن شَيْءٍ إِذْ كَانُوا يَجْحَدُونَ بِآيَاتِ اللَّهِ وَحَاقَ بِهِم مَّا كَانُوا بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ |26|46
हमने उन्हें उन चीज़ों में जमाव और सामर्थ्य प्रदान की थी, जिनमें तुम्हें जमाव और सामर्थ्य नहीं प्रदान की। और हमने उन्हें कान, आँखें और दिल दिए थे। किन्तु न तो उनके कान उनके कुछ काम आए और न उनकी आँखें और न उनके दिल ही। क्योंकि वे अल्लाह की आयतों का इनकार करते थे और जिस चीज़ की वे हँसी उड़ाते थे, उसी ने उन्हें आ घेरा।
وَلَقَدْ أَهْلَكْنَا مَا حَوْلَكُم مِّنَ الْقُرَىٰ وَصَرَّفْنَا الْآيَاتِ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُونَ |27|46
हम तुम्हारे आस-पास की बस्तियों को विनष्ट कर चुके हैं, हालाँकि हमने तरह-तरह से आयतें पेश की थीं, ताकि वे रुजू करें।
فَلَوْلَا نَصَرَهُمُ الَّذِينَ اتَّخَذُوا مِن دُونِ اللَّهِ قُرْبَانًا آلِهَةً ۖ بَلْ ضَلُّوا عَنْهُمْ ۚ وَذَٰلِكَ إِفْكُهُمْ وَمَا كَانُوا يَفْتَرُونَ |28|46
फिर क्यों न उन हस्तियों ने उसकी सहायता की जिनको उन्होंने अपने और अल्लाह के बीच माध्यम ठहराकर सामीप्य प्राप्त करने के लिए उपास्य बना लिया था? बल्कि वे उनसे गुम हो गए, और यह था उनका मिथ्यारोपण और वह कुछ जो वे घड़ते थे।
وَإِذْ صَرَفْنَا إِلَيْكَ نَفَرًا مِّنَ الْجِنِّ يَسْتَمِعُونَ الْقُرْآنَ فَلَمَّا حَضَرُوهُ قَالُوا أَنصِتُوا ۖ فَلَمَّا قُضِيَ وَلَّوْا إِلَىٰ قَوْمِهِم مُّنذِرِينَ |29|46
और याद करो (ऐ नबी) जब हमने कुछ जिन्नों को तुम्हारी ओर फेर दिया जो क़ुरआन सुनने लगे थे, तो जब वे वहाँ पहुँचे तो कहने लगे, "चुप हो जाओ!" फिर जब वह (क़ुरआन का पाठ) पूरा हुआ तो वे अपनी क़ौम की ओर सावधान करनेवाले होकर लौटे।
قَالُوا يَا قَوْمَنَا إِنَّا سَمِعْنَا كِتَابًا أُنزِلَ مِن بَعْدِ مُوسَىٰ مُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ يَهْدِي إِلَى الْحَقِّ وَإِلَىٰ طَرِيقٍ مُّسْتَقِيمٍ |30|46
उन्होंने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! हमने एक किताब सुनी है, जो मूसा के पश्चात अवतरित की गई है। उसकी पुष्टि में है जो उससे पहले से मौजूद है, सत्य की ओर और सीधे मार्ग की ओर मार्गदर्शन करती है।
يَا قَوْمَنَا أَجِيبُوا دَاعِيَ اللَّهِ وَآمِنُوا بِهِ يَغْفِرْ لَكُم مِّن ذُنُوبِكُمْ وَيُجِرْكُم مِّنْ عَذَابٍ أَلِيمٍ |31|46
ऐ हमारी क़ौम के लोगो! अल्लाह के आमंत्रणकर्त्ता का आमंत्रण स्वीकार करो और उसपर ईमान लाओ। अल्लाह तुम्हें क्षमा करके गुनाहों से तुम्हें पाक कर देगा और दुखद यातना से तुम्हें बचाएगा।
وَمَن لَّا يُجِبْ دَاعِيَ اللَّهِ فَلَيْسَ بِمُعْجِزٍ فِي الْأَرْضِ وَلَيْسَ لَهُ مِن دُونِهِ أَوْلِيَاءُ ۚ أُولَٰئِكَ فِي ضَلَالٍ مُّبِينٍ |32|46
और जो कोई अल्लाह के आमंत्रणकर्त्ता का आमंत्रण स्वीकार नहीं करेगा तो वह धरती में क़ाबू से बच निकलनेवाला नहीं है और न अल्लाह से हटकर उसके संरक्षक होंगे। ऐसे ही लोग खुली गुमराही में हैं।"
أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّ اللَّهَ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَلَمْ يَعْيَ بِخَلْقِهِنَّ بِقَادِرٍ عَلَىٰ أَن يُحْيِيَ الْمَوْتَىٰ ۚ بَلَىٰ إِنَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ |33|46
क्या उन्होंने देखा नहीं कि जिस अल्लाह ने आकाशों और धरती को पैदा किया और उनके पैदा करने से थका नहीं; क्या ऐसा नहीं कि वह मुर्दों को जीवित कर दे? क्यों नहीं, निश्चय ही उसे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।
وَيَوْمَ يُعْرَضُ الَّذِينَ كَفَرُوا عَلَى النَّارِ أَلَيْسَ هَٰذَا بِالْحَقِّ ۖ قَالُوا بَلَىٰ وَرَبِّنَا ۚ قَالَ فَذُوقُوا الْعَذَابَ بِمَا كُنتُمْ تَكْفُرُونَ |34|46
और याद करो जिस दिन वे लोग, जिन्होंने इनकार किया, आग के सामने पेश किए जाएँगे, (कहा जाएगा) "क्या यह सत्य नहीं है?" वे कहेंगे, "क्यों नहीं, हमारे रब की क़सम!" वह कहेगा, "तो अब यातना का मज़ा चखो, उस इनकार के बदले में जो तुम करते रहे थे।"
فَاصْبِرْ كَمَا صَبَرَ أُولُو الْعَزْمِ مِنَ الرُّسُلِ وَلَا تَسْتَعْجِل لَّهُمْ ۚ كَأَنَّهُمْ يَوْمَ يَرَوْنَ مَا يُوعَدُونَ لَمْ يَلْبَثُوا إِلَّا سَاعَةً مِّن نَّهَارٍ ۚ بَلَاغٌ ۚ فَهَلْ يُهْلَكُ إِلَّا الْقَوْمُ الْفَاسِقُونَ |35|46
अतः धैर्य से काम लो, जिस प्रकार संकल्पवान रसूलों ने धैर्य से काम लिया। और उनके लिए जल्दी न करो। जिस दिन वे लोग उस चीज़ को देख लेंगे जिसका उनसे वादा किया जाता है, तो वे महसूस करेंगे कि जैसे वे बस दिन की एक घड़ी भर ही ठहरे थे। यह (संदेश) साफ़-साफ़ पहुँचा देना है। अब क्या अवज्ञाकारी लोगों के अतिरिक्त कोई और विनष्ट होगा?
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1. The Opening (Al-Fatiha) (अल-फ़ातिहा)
2. The Cow (Al-Baqara) (अल-बक़रा)
3. The Imrans (Aale-Imran) (आले-इमरान)
4. The Women (An-Nisa) (अन-निसा)
5. The Table (Al-Maida) (अल-माइदा)
6. The Cattle (Al-An'am) (अल-अनआम)
7. The Heights (Al-A'raf) (अल-आराफ़)
8. The Spoils (Al-Anfal) (अल-अनफ़ाल)
9. The Repentance (At-Towba) (अत-तौबा)
10. Jonah (Yunus) (यूनुस)
11. Hud (हूद)
12. Joseph (Yusuf) (यूसुफ़)
13. The Thunder (Ar-Ra'd) (अर-रअद)
14. Abraham (Ibraheem) (इबराहीम)
15. The Rock (Al-Hijr) (अल-हिज्र)
16. The Bee (An-Nahl) (अल-नहल)
17. The Night Journey (Al-Isra) (अल-इसरा)
18. The Cave (Al-Kahf) (अल-कहफ़)
19. Mary (Mariam) (मरयम)
20. Ta-Ha (ता-हा)
21. The Prophets (Al-Anbiya) (अल-अंबिया)
22. The Pilgrimage (Al-Haj) (अल-हज)
23. The Believers (Al-Muminoon) (अल-मोमिनून)
24. The Light (An-Noor) (अन-नूर)
25. The Criterion (Al-Furqan) (अल-फ़ुरक़ान)
26. The Poets (Ash-Shu'ara) (अश-शुअरा)
27. The Ant (An-Naml) (अन-नम्ल)
28. The Narrative (Al-Qasas) (अल-क़सस)
29. The Spider (Al-Ankaboot) (अल-अनकबूत)
30. The Greeks (Ar-Room) (अर-रूम)
31. Luqman (लुक़मान)
32. The Adoration (As-Sajda) (अस-सजदा)
33. The Confederate Tribes (Al-Ahzab) (अल-अहज़ाब)
34. Sheba (Saba) (सबा)
35. The Originator of Creation (Al-Fatir) (अल-फ़ातिर)
36. Ya Sin (या सीन)
37. The Ranged in Ranks (As-Saffat) (अस-साफ़्फ़ात)
38. Sad (साद)
39. The Companies (Az-Zumar) (अज़-ज़ुमर)
40. The Forgiving One (Ghafir) (अल-मोमिन)
41. Revelations Well Expounded (Fussilat) (हा मीम)
42. The Counsel (Ash-Shoora) (अश-शूरा)
43. Ornaments of Gold (Az-Zukhruf) (अज़-ज़ुख़रुफ़)
44. The Smoke (Ad-Dukhan) (अद-दुख़ान)
45. The Kneeling (Al-Jasiya) (अल-जासिया)
46. The Sandhills (Al-Ahqaf) (अल-अहक़ाफ़)
47. Muhammad (मुहम्मद)
48. The Victory (Al-Fateh) (अल-फ़तह)
49. The Chambers (Al-Hujurat) (अल-हुजुरात)
50. Qaf (क़ाफ़)
51. The Scattering Winds (Az-Zariyat) (अज़-ज़ारीयात)
52. The Mount (At-Toor) (अत-तूर)
53. The Star (An-Najm) (अन-नज्म)
54. The Moon (Al-Qamar) (अल-क़मर)
55. The Merciful (Ar-Rehman) (अर-रहमान)
56. The Event (Al-Waqia) (अल-वाक़िआ)
57. The Iron (Al-Hadeed) (अल-हदीद)
58. She Who Pleaded (Al-Mujadala) (अल-मुजादला)
59. The Exile (Al-Hashr) (अल-हश्र)
60. She Who is Tested (Al-Mumtahina) (अल-मुमतहिना)
61. Battle Array (As-Saff) (अस-सफ़्फ़)
62. Friday, Or The Day of Congregation (Al-Juma) (अल-जुमा)
63. The Hypocrites (Al-Munafiqoon) (अल-मुनाफ़िक़ून)
64. Mutual Loss And Gain (At-Taghabun) (अत-तग़ाबुन)
65. The Divorce (At-Talaq) (अत-तलाक़)
66. The Prohibition (At-Tahreem) (अत-तहरीम)
67. The Kingdom Or Sovereignty (Al-Mulk) (अल-मुल्क)
68. The Pen (Al-Qalam) (अल-क़लम)
69. The Truth (Al-Haqqa) (अल-हाक़्क़ा)
70. The Ways of Ascent (Al-Ma'arij) (अल-मआरिज)
71. Noah (Nuh) (नूह)
72. The Jinn (Al-Jinn) (अल-जिन्न)
73. The Mantled One (Al-Muzzammil) (अल-मुज़्ज़म्मिल)
74. The Cloaked One (Al-Muddassir) (अल-मुद्दस्सिर)
75. The Resurrection (Al-Qiyama) (अल-क़ियामह)
76. The Man (Ad-Dehar Or Al-Insaan) (अद-दहर)
77. Those That Are Sent Forth (Al-Mursalat) (अल-मुरसलात)
78. The Tidings (An-Naba) (अन-नबा)
79. The Snatchers (An-Nazi'at) (अन-नाज़िआत)
80. He Frowned (Abasa) (अ ब स)
81. The Folding Up (At-Takweer) (अत-तक्वीर)
82. The Cleaving Asunder (Al-Infitar) (अल-इनफ़ितार)
83. The Defrauders (Al-Mutaffefeen) (अल-मुतफ़्फ़िफ़ीन)
84. The Rending Asunder (Al-Inshiqaq) (अल-इनशिक़ाक़)
85. The Constellations (Al-Burooj) (अल-बुरूज)
86. The Nighty Visitant (At-Tariq) (अत-तारिक़)
87. The Most High (Al-A'la) (अल-आला)
88. The Overwhelming Event (Al-Ghashiya) (अल-ग़ाशिया)
89. The Dawn (Al-Fajr) (अल-फज़्र)
90. The City (Al-Balad) (अल-बलद)
91. The Sun (Ash-Shams) (अश-शम्स)
92. The Night (Al-Layl) (अल-लैल)
93. Day Light (Ad-Duha) (अज़-ज़ुहा)
94. Comfort (Al-Inshirah) (अल-इनशिराह)
95. The Fig (At-Teen) (अत-तीन)
96. The Clot (Al-Alaq) (अल-अलक़)
97. The Night of Glory (Al-Qadr) (अल-क़द्र)
98. The Clear Proof (Al-Bayyina) (अल-बय्यिनह)
99. The Earthquake (Az-Zilzal) (अज़-ज़िलज़ाल)
100. The War Steeds (Al-Aadiyat) (अल-आदियात)
101. The Disaster (Al-Qariah) (अल-क़ारियह)
102. Worldly Gain (At-Takasur) (अत-तकासुर)
103. Time (Al-Asr) (अल-अस्र)
104. The Slanderer (Al-Humaza) (अल-हु-मज़ह)
105. The Elephant (Al-Feel) (अल-फ़ील)
106. The Quraish (अल-क़ुरैश)
107. Acts of Kindness (Al-Ma'un) (अल-माऊन)
108. Abundance (Al-Kausar) (अल-कौसर)
109. The Unbelievers (Al-Kafiroon) (अल-काफ़िरून)
110. The Help (An-Nasr) (अन-नस्र)
111. The Flame (Al-Lahab) (अल-लहब)
112. The Unity (Al-Ikhlas) (अल-इख़लास)
113. The Daybreak (Al-Falaq) (अल-फ़लक़)
114. The Men (An-Nas) (अन-नास)
अध्याय
--Select--
1. अल-फ़ातिहा
2. अल-बक़रा
3. आले-इमरान
4. अन-निसा
5. अल-माइदा
6. अल-अनआम
7. अल-आराफ़
8. अल-अनफ़ाल
9. अत-तौबा
10. यूनुस
11. हूद
12. यूसुफ़
13. अर-रअद
14. इबराहीम
15. अल-हिज्र
16. अल-नहल
17. अल-इसरा
18. अल-कहफ़
19. मरयम
20. ता-हा
21. अल-अंबिया
22. अल-हज
23. अल-मोमिनून
24. अन-नूर
25. अल-फ़ुरक़ान
26. अश-शुअरा
27. अन-नम्ल
28. अल-क़सस
29. अल-अनकबूत
30. अर-रूम
31. लुक़मान
32. अस-सजदा
33. अल-अहज़ाब
34. सबा
35. अल-फ़ातिर
36. या सीन
37. अस-साफ़्फ़ात
38. साद
39. अज़-ज़ुमर
40. अल-मोमिन
41. हा मीम
42. अश-शूरा
43. अज़-ज़ुख़रुफ़
44. अद-दुख़ान
45. अल-जासिया
46. अल-अहक़ाफ़
47. मुहम्मद
48. अल-फ़तह
49. अल-हुजुरात
50. क़ाफ़
51. अज़-ज़ारीयात
52. अत-तूर
53. अन-नज्म
54. अल-क़मर
55. अर-रहमान
56. अल-वाक़िआ
57. अल-हदीद
58. अल-मुजादला
59. अल-हश्र
60. अल-मुमतहिना
61. अस-सफ़्फ़
62. अल-जुमा
63. अल-मुनाफ़िक़ून
64. अत-तग़ाबुन
65. अत-तलाक़
66. अत-तहरीम
67. अल-मुल्क
68. अल-क़लम
69. अल-हाक़्क़ा
70. अल-मआरिज
71. नूह
72. अल-जिन्न
73. अल-मुज़्ज़म्मिल
74. अल-मुद्दस्सिर
75. अल-क़ियामह
76. अद-दहर
77. अल-मुरसलात
78. अन-नबा
79. अन-नाज़िआत
80. अ ब स
81. अत-तक्वीर
82. अल-इनफ़ितार
83. अल-मुतफ़्फ़िफ़ीन
84. अल-इनशिक़ाक़
85. अल-बुरूज
86. अत-तारिक़
87. अल-आला
88. अल-ग़ाशिया
89. अल-फज़्र
90. अल-बलद
91. अश-शम्स
92. अल-लैल
93. अज़-ज़ुहा
94. अल-इनशिराह
95. अत-तीन
96. अल-अलक़
97. अल-क़द्र
98. अल-बय्यिनह
99. अज़-ज़िलज़ाल
100. अल-आदियात
101. अल-क़ारियह
102. अत-तकासुर
103. अल-अस्र
104. अल-हु-मज़ह
105. अल-फ़ील
106. अल-क़ुरैश
107. अल-माऊन
108. अल-कौसर
109. अल-काफ़िरून
110. अन-नस्र
111. अल-लहब
112. अल-इख़लास
113. अल-फ़लक़
114. अन-नास