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अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील अत्यन्त दयावान है।
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
طسم |1|28
ता॰ सीन॰ मीम॰
تِلْكَ آيَاتُ الْكِتَابِ الْمُبِينِ |2|28
(जो आयतें अवतरित हो रही हैं) वे स्पष्ट किताब की आयतें हैं।
نَتْلُو عَلَيْكَ مِن نَّبَإِ مُوسَىٰ وَفِرْعَوْنَ بِالْحَقِّ لِقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ |3|28
हम तुम्हें मूसा और फ़िरऔन का कुछ वृत्तान्त ठीक-ठीक सुनाते हैं, उन लोगों के लिए जो ईमान लाना चाहें।
إِنَّ فِرْعَوْنَ عَلَا فِي الْأَرْضِ وَجَعَلَ أَهْلَهَا شِيَعًا يَسْتَضْعِفُ طَائِفَةً مِّنْهُمْ يُذَبِّحُ أَبْنَاءَهُمْ وَيَسْتَحْيِي نِسَاءَهُمْ ۚ إِنَّهُ كَانَ مِنَ الْمُفْسِدِينَ |4|28
निस्संदेह फ़िरऔन ने धरती में सरकशी की और उसके निवासियों को विभिन्न गिरोहों में विभक्त कर दिया। उनमें से एक गरोह को कमज़ोर कर रखा था। वह उनके बेटों की हत्या करता और उनकी स्त्रियों को जीवित रहने देता। निश्चय ही वह बिगाड़ पैदा करनेवालों में से था।
وَنُرِيدُ أَن نَّمُنَّ عَلَى الَّذِينَ اسْتُضْعِفُوا فِي الْأَرْضِ وَنَجْعَلَهُمْ أَئِمَّةً وَنَجْعَلَهُمُ الْوَارِثِينَ |5|28
और हम यह चाहते थे कि उन लोगों पर उपकार करें, जो धरती में कमज़ोर पड़े थे और उन्हें नायक बनाएँ और उन्हीं को वारिस बनाएँ।
وَنُمَكِّنَ لَهُمْ فِي الْأَرْضِ وَنُرِيَ فِرْعَوْنَ وَهَامَانَ وَجُنُودَهُمَا مِنْهُم مَّا كَانُوا يَحْذَرُونَ |6|28
और धरती में उन्हें सत्ताधिकार प्रदान करें और उनकी ओर से फ़िरऔन और हामान और उनकी सेनाओं को वह कुछ दिखाएँ, जिसकी उन्हें आशंका थी।
وَأَوْحَيْنَا إِلَىٰ أُمِّ مُوسَىٰ أَنْ أَرْضِعِيهِ ۖ فَإِذَا خِفْتِ عَلَيْهِ فَأَلْقِيهِ فِي الْيَمِّ وَلَا تَخَافِي وَلَا تَحْزَنِي ۖ إِنَّا رَادُّوهُ إِلَيْكِ وَجَاعِلُوهُ مِنَ الْمُرْسَلِينَ |7|28
हमने मूसा की माँ को संकेत किया कि "उसे दूध पिला फिर जब तुझे उसके विषय में भय हो, तो उसे दरिया में डाल दे और न तुझे कोई भय हो और न तू शोकाकुल हो। हम उसे तेरे पास लौटा लाएँगे और उसे रसूल बनाएँगे।"
فَالْتَقَطَهُ آلُ فِرْعَوْنَ لِيَكُونَ لَهُمْ عَدُوًّا وَحَزَنًا ۗ إِنَّ فِرْعَوْنَ وَهَامَانَ وَجُنُودَهُمَا كَانُوا خَاطِئِينَ |8|28
अन्ततः फ़िरऔन के लोगों ने उसे उठा लिया, ताकि परिणामस्वरूप वह उनका शत्रु और उनके लिए दुख बने। निश्चय ही फ़िरऔन और हामान और उनकी सेनाओं से बड़ी चूक हुई।
وَقَالَتِ امْرَأَتُ فِرْعَوْنَ قُرَّتُ عَيْنٍ لِّي وَلَكَ ۖ لَا تَقْتُلُوهُ عَسَىٰ أَن يَنفَعَنَا أَوْ نَتَّخِذَهُ وَلَدًا وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ |9|28
फ़िरऔन की स्त्री ने कहा, "यह मेरी और तुम्हारी आँखों की ठंडक है। इसकी हत्या न करो, कदाचित यह हमें लाभ पहुँचाए या हम इसे अपना बेटा ही बना लें।" और वे (परिणाम से) बेख़बर थे।
وَأَصْبَحَ فُؤَادُ أُمِّ مُوسَىٰ فَارِغًا ۖ إِن كَادَتْ لَتُبْدِي بِهِ لَوْلَا أَن رَّبَطْنَا عَلَىٰ قَلْبِهَا لِتَكُونَ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ |10|28
और मूसा की माँ का हृदय विचलित हो गया। निकट था कि वह उसको प्रकट कर देती, यदि हम उसके दिल को इस ध्येय से न सँभालते कि वह मोमिनों में से हो।
وَقَالَتْ لِأُخْتِهِ قُصِّيهِ ۖ فَبَصُرَتْ بِهِ عَن جُنُبٍ وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ |11|28
उसने उसकी बहन से कहा, "तू उसके पीछे-पीछे जा।" अतएव वह उसे दूर ही दूर से देखती रही और वे महसूस नहीं कर रहे थे।
۞ وَحَرَّمْنَا عَلَيْهِ الْمَرَاضِعَ مِن قَبْلُ فَقَالَتْ هَلْ أَدُلُّكُمْ عَلَىٰ أَهْلِ بَيْتٍ يَكْفُلُونَهُ لَكُمْ وَهُمْ لَهُ نَاصِحُونَ |12|28
हमने पहले ही से दूध पिलानेवालियों को उसपर हराम कर दिया। अतः उसने (मूसा की बहन ने) कहा कि "क्या मैं तुम्हें ऐसे घरवालों का पता बताऊँ जो तुम्हारे लिए इसके पालन-पोषण का ज़िम्मा लें और इसके शुभ-चिंतक हों?"
فَرَدَدْنَاهُ إِلَىٰ أُمِّهِ كَيْ تَقَرَّ عَيْنُهَا وَلَا تَحْزَنَ وَلِتَعْلَمَ أَنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُونَ |13|28
इस प्रकार हम उसे उसकी माँ के पास लौटा लाए, ताकि उसकी आँख ठंडी हो और वह शोकाकुल न हो और ताकि वह जान ले कि अल्लाह का वादा सच्चा है, किन्तु उनमें से अधिकतर लोग जानते नहीं।
وَلَمَّا بَلَغَ أَشُدَّهُ وَاسْتَوَىٰ آتَيْنَاهُ حُكْمًا وَعِلْمًا ۚ وَكَذَٰلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ |14|28
और जब वह अपनी जवानी को पहुँचा और भरपूर हो गया, तो हमने उसे निर्णय-शक्ति और ज्ञान प्रदान किया। और सुकर्मी लोगों को हम इसी प्रकार बदला देते हैं।
وَدَخَلَ الْمَدِينَةَ عَلَىٰ حِينِ غَفْلَةٍ مِّنْ أَهْلِهَا فَوَجَدَ فِيهَا رَجُلَيْنِ يَقْتَتِلَانِ هَٰذَا مِن شِيعَتِهِ وَهَٰذَا مِنْ عَدُوِّهِ ۖ فَاسْتَغَاثَهُ الَّذِي مِن شِيعَتِهِ عَلَى الَّذِي مِنْ عَدُوِّهِ فَوَكَزَهُ مُوسَىٰ فَقَضَىٰ عَلَيْهِ ۖ قَالَ هَٰذَا مِنْ عَمَلِ الشَّيْطَانِ ۖ إِنَّهُ عَدُوٌّ مُّضِلٌّ مُّبِينٌ |15|28
उसने नगर में ऐसे समय प्रवेश किया जबकि वहाँ के लोग बेख़बर थे। उसने वहाँ दो आदमियों को लड़ते पाया। यह उसके अपने गरोह का था और यह उसके शत्रुओं में से था। जो उसके गरोह में से था उसने उसके मुक़ाबले में, जो उसके शत्रुओं में से था, सहायता के लिए उसे पुकारा। मूसा ने उसे घूँसा मारा और उसका काम तमाम कर दिया। कहा, "यह शैतान की कार्यवाई है। निश्चय ही वह खुला पथभ्रष्ट करनेवाला शत्रु है।"
قَالَ رَبِّ إِنِّي ظَلَمْتُ نَفْسِي فَاغْفِرْ لِي فَغَفَرَ لَهُ ۚ إِنَّهُ هُوَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ |16|28
उसने कहा, "ऐ मेरे रब, मैंने अपने आपपर ज़ुल्म किया। अतः तू मुझे क्षमा कर दे।" अतएव उसने उसे क्षमा कर दिया। निश्चय ही वही बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है।
قَالَ رَبِّ بِمَا أَنْعَمْتَ عَلَيَّ فَلَنْ أَكُونَ ظَهِيرًا لِّلْمُجْرِمِينَ |17|28
उसने कहा, "ऐ मेरे रब! जैसे तूने मुझपर अनुकम्पा दर्शाई है, अब मैं भी कभी अपराधियों का सहायक नहीं बनूँगा।"
فَأَصْبَحَ فِي الْمَدِينَةِ خَائِفًا يَتَرَقَّبُ فَإِذَا الَّذِي اسْتَنصَرَهُ بِالْأَمْسِ يَسْتَصْرِخُهُ ۚ قَالَ لَهُ مُوسَىٰ إِنَّكَ لَغَوِيٌّ مُّبِينٌ |18|28
फिर दूसरे दिन वह नगर में डरता, टोह लेता हुआ प्रविष्ट हुआ। इतने में अचानक क्या देखता है कि वही व्यक्ति जिसने कल उससे सहायता चाही थी, उसे पुकार रहा है। मूसा ने उससे कहा, "तू तो प्रत्यक्ष बहका हुआ व्यक्ति है।"
فَلَمَّا أَنْ أَرَادَ أَن يَبْطِشَ بِالَّذِي هُوَ عَدُوٌّ لَّهُمَا قَالَ يَا مُوسَىٰ أَتُرِيدُ أَن تَقْتُلَنِي كَمَا قَتَلْتَ نَفْسًا بِالْأَمْسِ ۖ إِن تُرِيدُ إِلَّا أَن تَكُونَ جَبَّارًا فِي الْأَرْضِ وَمَا تُرِيدُ أَن تَكُونَ مِنَ الْمُصْلِحِينَ |19|28
फिर जब उसने इरादा किया कि उस व्यक्ति को पकड़े, जो उन लोगों का शत्रु था, तो वह बोल उठा, "ऐ मूसा, क्या तू चाहता है कि मुझे मार डाले, जिस प्रकार तूने कल एक व्यक्ति को मार डाला? धरती में बस तू निर्दय अत्याचारी बनकर रहना चाहता है और यह नहीं चाहता कि सुधार करनेवाला हो।"
وَجَاءَ رَجُلٌ مِّنْ أَقْصَى الْمَدِينَةِ يَسْعَىٰ قَالَ يَا مُوسَىٰ إِنَّ الْمَلَأَ يَأْتَمِرُونَ بِكَ لِيَقْتُلُوكَ فَاخْرُجْ إِنِّي لَكَ مِنَ النَّاصِحِينَ |20|28
इसके पश्चात एक आदमी नगर के परले सिरे से दौड़ता हुआ आया। उसने कहा, "ऐ मूसा, सरदार तेरे विषय में परामर्श कर रहे हैं कि तुझे मार डालें। अतः तू निकल जा! मैं तेरा हितैषी हूँ।"
فَخَرَجَ مِنْهَا خَائِفًا يَتَرَقَّبُ ۖ قَالَ رَبِّ نَجِّنِي مِنَ الْقَوْمِ الظَّالِمِينَ |21|28
फिर वह वहाँ से डरता और ख़तरा भाँपता हुआ निकल खड़ा हुआ। उसने कहा, "ऐ मेरे रब! मुझे ज़ालिम लोगों से छुटकारा दे।"
وَلَمَّا تَوَجَّهَ تِلْقَاءَ مَدْيَنَ قَالَ عَسَىٰ رَبِّي أَن يَهْدِيَنِي سَوَاءَ السَّبِيلِ |22|28
जब उसने मदयन का रुख़ किया तो कहा, "आशा है, मेरा रब मुझे ठीक रास्ते पर डाल देगा।"
وَلَمَّا وَرَدَ مَاءَ مَدْيَنَ وَجَدَ عَلَيْهِ أُمَّةً مِّنَ النَّاسِ يَسْقُونَ وَوَجَدَ مِن دُونِهِمُ امْرَأَتَيْنِ تَذُودَانِ ۖ قَالَ مَا خَطْبُكُمَا ۖ قَالَتَا لَا نَسْقِي حَتَّىٰ يُصْدِرَ الرِّعَاءُ ۖ وَأَبُونَا شَيْخٌ كَبِيرٌ |23|28
और जब वह मदयन के पानी पर पहुँचा तो उसने उसपर पानी पिलाते लोगों को एक गरोह पाया। और उनसे हटकर एक ओर दो स्त्रियों को पाया, जो अपने जानवरों को रोक रही थीं। उसने कहा, "तुम्हारा क्या मामला है?" उन्होंने कहा, "हम उस समय तक पानी नहीं पिला सकते, जब तक ये चरवाहे अपने जानवर निकाल न ले जाएँ, और हमारे बाप बहुत ही बूढ़े हैं।"
فَسَقَىٰ لَهُمَا ثُمَّ تَوَلَّىٰ إِلَى الظِّلِّ فَقَالَ رَبِّ إِنِّي لِمَا أَنزَلْتَ إِلَيَّ مِنْ خَيْرٍ فَقِيرٌ |24|28
तब उसने उन दोनों के लिए पानी पिला दिया। फिर छाया की ओर पलट गया और कहा, "ऐ मेरे रब, जो भलाई भी तू मेरी ओर उतार दे, मैं उसका ज़रूरतमंद हूँ।"
فَجَاءَتْهُ إِحْدَاهُمَا تَمْشِي عَلَى اسْتِحْيَاءٍ قَالَتْ إِنَّ أَبِي يَدْعُوكَ لِيَجْزِيَكَ أَجْرَ مَا سَقَيْتَ لَنَا ۚ فَلَمَّا جَاءَهُ وَقَصَّ عَلَيْهِ الْقَصَصَ قَالَ لَا تَخَفْ ۖ نَجَوْتَ مِنَ الْقَوْمِ الظَّالِمِينَ |25|28
फिर उन दोनों में से एक लजाती हुई उसके पास आई। उसने कहा, "मेरे बाप आपको बुला रहे हैं, ताकि आपने हमारे लिए (जानवरों को) जो पानी पिलाया है, उसका बदला आपको दें।" फिर जब वह उसके पास पहुँचा और उसे अपने सारे वृत्तान्त सुनाए तो उसने कहा, "कुछ भय न करो। तुम ज़ालिम लोगों से छुटकारा पा गए हो।"
قَالَتْ إِحْدَاهُمَا يَا أَبَتِ اسْتَأْجِرْهُ ۖ إِنَّ خَيْرَ مَنِ اسْتَأْجَرْتَ الْقَوِيُّ الْأَمِينُ |26|28
उन दोनों स्त्रियों में से एक ने कहा, "ऐ मेरे बाप! इसको मज़दूरी पर रख लीजिए। अच्छा व्यक्ति, जिसे आप मज़दूरी पर रखें, वही है जो बलवान, अमानतदार हो।"
قَالَ إِنِّي أُرِيدُ أَنْ أُنكِحَكَ إِحْدَى ابْنَتَيَّ هَاتَيْنِ عَلَىٰ أَن تَأْجُرَنِي ثَمَانِيَ حِجَجٍ ۖ فَإِنْ أَتْمَمْتَ عَشْرًا فَمِنْ عِندِكَ ۖ وَمَا أُرِيدُ أَنْ أَشُقَّ عَلَيْكَ ۚ سَتَجِدُنِي إِن شَاءَ اللَّهُ مِنَ الصَّالِحِينَ |27|28
उसने कहा, "मैं चाहता हूँ कि अपनी इन दोनों बेटियों में से एक का विवाह तुम्हारे साथ इस शर्त पर कर दूँ कि तुम आठ वर्ष तक मेरे यहाँ नौकरी करो। और यदि तुम दस वर्ष पूरे कर दो, तो यह तुम्हारी ओर से होगा। मैं तुम्हें कठिनाई में डालना नहीं चाहता। यदि अल्लाह ने चाहा तो तुम मुझे नेक पाओगे।"
قَالَ ذَٰلِكَ بَيْنِي وَبَيْنَكَ ۖ أَيَّمَا الْأَجَلَيْنِ قَضَيْتُ فَلَا عُدْوَانَ عَلَيَّ ۖ وَاللَّهُ عَلَىٰ مَا نَقُولُ وَكِيلٌ |28|28
कहा, "यह मेरे और आपके बीच निश्चय हो चुका। इन दोनों अवधियों में से जो भी मैं पूरी कर दूँ, तो तुझपर कोई ज़्यादती नहीं होगी। और जो कुछ हम कह रहे हैं, उसके विषय में अल्लाह पर भरोसा काफ़ी है।"
۞ فَلَمَّا قَضَىٰ مُوسَى الْأَجَلَ وَسَارَ بِأَهْلِهِ آنَسَ مِن جَانِبِ الطُّورِ نَارًا قَالَ لِأَهْلِهِ امْكُثُوا إِنِّي آنَسْتُ نَارًا لَّعَلِّي آتِيكُم مِّنْهَا بِخَبَرٍ أَوْ جَذْوَةٍ مِّنَ النَّارِ لَعَلَّكُمْ تَصْطَلُونَ |29|28
फिर जब मूसा ने अवधि पूरी कर दी और अपने घरवालों को लेकर चला तो तूर की ओर उसने एक आग-सी देखी। उसने अपने घरवालों से कहा, "ठहरो, मैंने एक आग का अवलोकन किया है। कदाचित मैं वहाँ से तुम्हारे पास कोई ख़बर ले आऊँ या उस आग से कोई अंगारा ही, ताकि तुम ताप सको।"
فَلَمَّا أَتَاهَا نُودِيَ مِن شَاطِئِ الْوَادِ الْأَيْمَنِ فِي الْبُقْعَةِ الْمُبَارَكَةِ مِنَ الشَّجَرَةِ أَن يَا مُوسَىٰ إِنِّي أَنَا اللَّهُ رَبُّ الْعَالَمِينَ |30|28
फिर जब वह वहाँ पहुँचा तो दाहिनी घाटी के किनारे से शुभ क्षेत्र में वृक्ष से आवाज़ आई, "ऐ मूसा! मैं ही अल्लाह हूँ, सारे संसार का रब!"
وَأَنْ أَلْقِ عَصَاكَ ۖ فَلَمَّا رَآهَا تَهْتَزُّ كَأَنَّهَا جَانٌّ وَلَّىٰ مُدْبِرًا وَلَمْ يُعَقِّبْ ۚ يَا مُوسَىٰ أَقْبِلْ وَلَا تَخَفْ ۖ إِنَّكَ مِنَ الْآمِنِينَ |31|28
और यह कि "डाल दे अपनी लाठी।" फिर जब उसने देखा कि वह बल खा रही है, जैसे कोई साँप हो तो वह पीठ फेरकर भागा और पीछे मुड़कर भी न देखा। "ऐ मूसा! आगे आ और भय न कर। निस्संदेह तेरे लिए कोई भय की बात नहीं।
اسْلُكْ يَدَكَ فِي جَيْبِكَ تَخْرُجْ بَيْضَاءَ مِنْ غَيْرِ سُوءٍ وَاضْمُمْ إِلَيْكَ جَنَاحَكَ مِنَ الرَّهْبِ ۖ فَذَانِكَ بُرْهَانَانِ مِن رَّبِّكَ إِلَىٰ فِرْعَوْنَ وَمَلَئِهِ ۚ إِنَّهُمْ كَانُوا قَوْمًا فَاسِقِينَ |32|28
अपना हाथ अपने गिरेबान में डाल। बिना किसी ख़राबी के चमकता हुआ निकलेगा। और भय के समय अपनी भुजा को अपने से मिलाए रख। ये दो निशानियाँ हैं तेरे रब की ओर से फ़िरऔन और उसके दरबारियों के पास लेकर जाने के लिए। निश्चय ही वे बड़े अवज्ञाकारी लोग हैं।"
قَالَ رَبِّ إِنِّي قَتَلْتُ مِنْهُمْ نَفْسًا فَأَخَافُ أَن يَقْتُلُونِ |33|28
उसने कहा, "ऐ मेरे रब! मुझसे उनके एक आदमी की जान गई है। इसलिए मैं डरता हूँ कि वे मुझे मार डालेंगे।
وَأَخِي هَارُونُ هُوَ أَفْصَحُ مِنِّي لِسَانًا فَأَرْسِلْهُ مَعِيَ رِدْءًا يُصَدِّقُنِي ۖ إِنِّي أَخَافُ أَن يُكَذِّبُونِ |34|28
मेरे भाई हारून की ज़बान मुझसे बढ़कर धाराप्रवाह है। अतः उसे मेरे साथ सहायक के रूप में भेज कि वह मेरी पुष्टि करे। मुझे भय है कि वे मुझे झुठलाएँगे।"
قَالَ سَنَشُدُّ عَضُدَكَ بِأَخِيكَ وَنَجْعَلُ لَكُمَا سُلْطَانًا فَلَا يَصِلُونَ إِلَيْكُمَا ۚ بِآيَاتِنَا أَنتُمَا وَمَنِ اتَّبَعَكُمَا الْغَالِبُونَ |35|28
कहा, "हम तेरे भाई के द्वारा तेरी भुजा मज़बूत करेंगे, और तुम दोनों को एक ओज प्रदान करेंगे कि वे फिर तुम तक न पहुँच सकेंगे। हमारी निशानियों के कारण तुम दोनों और जो तुम्हारे अनुयायी होंगे वे ही प्रभावी होंगे।"
فَلَمَّا جَاءَهُم مُّوسَىٰ بِآيَاتِنَا بَيِّنَاتٍ قَالُوا مَا هَٰذَا إِلَّا سِحْرٌ مُّفْتَرًى وَمَا سَمِعْنَا بِهَٰذَا فِي آبَائِنَا الْأَوَّلِينَ |36|28
फिर जब मूसा उनके पास हमारी खुली-खुली निशानियाँ लेकर आया तो उन्होंने कहा, "यह तो बस घड़ा हुआ जादू है। हमने तो यह बात अपने अगले बाप-दादा में कभी सुनी ही नहीं।"
وَقَالَ مُوسَىٰ رَبِّي أَعْلَمُ بِمَن جَاءَ بِالْهُدَىٰ مِنْ عِندِهِ وَمَن تَكُونُ لَهُ عَاقِبَةُ الدَّارِ ۖ إِنَّهُ لَا يُفْلِحُ الظَّالِمُونَ |37|28
मूसा ने कहा, "मेरा रब उस व्यक्ति को भली-भाँति जानता है जो उसके यहाँ से मार्गदर्शन लेकर आया है, और उसको भी जिसके लिए अंतिम घर है। निश्चय ही ज़ालिम सफल नहीं होते।"
وَقَالَ فِرْعَوْنُ يَا أَيُّهَا الْمَلَأُ مَا عَلِمْتُ لَكُم مِّنْ إِلَٰهٍ غَيْرِي فَأَوْقِدْ لِي يَا هَامَانُ عَلَى الطِّينِ فَاجْعَل لِّي صَرْحًا لَّعَلِّي أَطَّلِعُ إِلَىٰ إِلَٰهِ مُوسَىٰ وَإِنِّي لَأَظُنُّهُ مِنَ الْكَاذِبِينَ |38|28
फ़िरऔन ने कहा, "ऐ दरबारवालो, मैं तो अपने सिवा तुम्हारे किसी प्रभु को नहीं जानता। अच्छा तो ऐ हामान! तू मेरे लिए ईटें आग में पकवा। फिर मेरे लिए एक ऊँचा महल बना कि मैं मूसा के प्रभु को झाँक आऊँ। मैं तो उसे झूठा समझता हूँ।"
وَاسْتَكْبَرَ هُوَ وَجُنُودُهُ فِي الْأَرْضِ بِغَيْرِ الْحَقِّ وَظَنُّوا أَنَّهُمْ إِلَيْنَا لَا يُرْجَعُونَ |39|28
उसने और उसकी सेनाओं ने धरती में नाहक़ घमंड किया और समझा कि उन्हें हमारी ओर लौटना नहीं है।
فَأَخَذْنَاهُ وَجُنُودَهُ فَنَبَذْنَاهُمْ فِي الْيَمِّ ۖ فَانظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الظَّالِمِينَ |40|28
अन्ततः हमने उसे औऱ उसकी सेनाओं को पकड़ लिया और उन्हें गहरे पानी में फेंक दिया। अब देख लो कि ज़ालिमों का कैसा परिणाम हुआ।
وَجَعَلْنَاهُمْ أَئِمَّةً يَدْعُونَ إِلَى النَّارِ ۖ وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ لَا يُنصَرُونَ |41|28
और हमने उन्हें आग की ओर बुलानेवाले पेशवा बना दिया और क़ियामत के दिन उन्हें कोई सहायता प्राप्त न होगी।
وَأَتْبَعْنَاهُمْ فِي هَٰذِهِ الدُّنْيَا لَعْنَةً ۖ وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ هُم مِّنَ الْمَقْبُوحِينَ |42|28
और हमने इस दुनिया में उनके पीछे लानत लगा दी और क़ियामत के दिन वही बदहाल होंगे।
وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ مِن بَعْدِ مَا أَهْلَكْنَا الْقُرُونَ الْأُولَىٰ بَصَائِرَ لِلنَّاسِ وَهُدًى وَرَحْمَةً لَّعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُونَ |43|28
और अगली नस्लों को विनष्ट कर देने के पश्चात हमने मूसा को किताब प्रदान की, लोगों के लिए अन्तर्दृष्टियों की सामग्री, मार्गदर्शन और दयालुता बनाकर, ताकि वे ध्यान दें।
وَمَا كُنتَ بِجَانِبِ الْغَرْبِيِّ إِذْ قَضَيْنَا إِلَىٰ مُوسَى الْأَمْرَ وَمَا كُنتَ مِنَ الشَّاهِدِينَ |44|28
तुम तो (नगर के) पश्चिमी किनारे पर नहीं थे, जब हमने मूसा को बात की निर्णित सूचना दी थी, और न तुम गवाहों में से थे।
وَلَٰكِنَّا أَنشَأْنَا قُرُونًا فَتَطَاوَلَ عَلَيْهِمُ الْعُمُرُ ۚ وَمَا كُنتَ ثَاوِيًا فِي أَهْلِ مَدْيَنَ تَتْلُو عَلَيْهِمْ آيَاتِنَا وَلَٰكِنَّا كُنَّا مُرْسِلِينَ |45|28
लेकिन हमने बहुत-सी नस्लें उठाईं और उनपर बहुत समय बीत गया। और न तुम मदयनवालों में रहते थे कि उन्हें हमारी आयतें सुना रहे होते, किन्तु रसूलों को भेजनेवाले हम ही रहे हैं।
وَمَا كُنتَ بِجَانِبِ الطُّورِ إِذْ نَادَيْنَا وَلَٰكِن رَّحْمَةً مِّن رَّبِّكَ لِتُنذِرَ قَوْمًا مَّا أَتَاهُم مِّن نَّذِيرٍ مِّن قَبْلِكَ لَعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُونَ |46|28
और तुम तूर के अंचल में भी उपस्थित न थे जब हमने पुकारा था, किन्तु यह तुम्हारे रब की दयालुता है - ताकि तुम ऐसे लोगों को सचेत कर दो जिनके पास तुमसे पहले कोई सचेत करनेवाला नहीं आया, ताकि वे ध्यान दें।
وَلَوْلَا أَن تُصِيبَهُم مُّصِيبَةٌ بِمَا قَدَّمَتْ أَيْدِيهِمْ فَيَقُولُوا رَبَّنَا لَوْلَا أَرْسَلْتَ إِلَيْنَا رَسُولًا فَنَتَّبِعَ آيَاتِكَ وَنَكُونَ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ |47|28
(हम रसूल बनाकर न भेजते) यदि यह बात न होती कि जो कुछ उनके हाथ आगे भेज चुके हैं उसके कारण जब उनपर कोई मुसीबत आए तो वे कहने लगें, "ऐ हमारे रब, तूने क्यों न हमारी ओर कोई रसूल भेजा कि हम तेरी आयतों का (अनुसरण) करते और मोमिन होते?"
فَلَمَّا جَاءَهُمُ الْحَقُّ مِنْ عِندِنَا قَالُوا لَوْلَا أُوتِيَ مِثْلَ مَا أُوتِيَ مُوسَىٰ ۚ أَوَلَمْ يَكْفُرُوا بِمَا أُوتِيَ مُوسَىٰ مِن قَبْلُ ۖ قَالُوا سِحْرَانِ تَظَاهَرَا وَقَالُوا إِنَّا بِكُلٍّ كَافِرُونَ |48|28
फिर जब उनके पास हमारे यहाँ से सत्य आ गया तो वे कहने लगे कि "जो चीज़ मूसा को मिली थी उसी तरह की चीज़ इसे क्यों न मिली?" क्या वे उसका इनकार नहीं कर चुके हैं, जो इससे पहले मूसा को प्रदान किया गया था? उन्होंने कहा, "दोनों जादू हैं जो एक-दूसरे की सहायता करते हैं।" और कहा, "हम तो हरेक का इनकार करते हैं।"
قُلْ فَأْتُوا بِكِتَابٍ مِّنْ عِندِ اللَّهِ هُوَ أَهْدَىٰ مِنْهُمَا أَتَّبِعْهُ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ |49|28
कहो, "अच्छा तो लाओ अल्लाह के यहाँ से कोई ऐसी किताब, जो इन दोनों से बढ़कर मार्गदर्शन करनेवाली हो कि मैं उसका अनुसरण करूँ, यदि तुम सच्चे हो?"
فَإِن لَّمْ يَسْتَجِيبُوا لَكَ فَاعْلَمْ أَنَّمَا يَتَّبِعُونَ أَهْوَاءَهُمْ ۚ وَمَنْ أَضَلُّ مِمَّنِ اتَّبَعَ هَوَاهُ بِغَيْرِ هُدًى مِّنَ اللَّهِ ۚ إِنَّ اللَّهَ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ |50|28
अब यदि वे तुम्हारी माँग पूरी न करें तो जान लो कि वे केवल अपनी इच्छाओं के पीछे चलते हैं। और उस व्यक्ति से बढ़कर भटका हुआ कौन होगा जो अल्लाह की ओर से किसी मार्गदर्शन के बिना अपनी इच्छा पर चले? निश्चय ही अल्लाह ज़ालिम लोगों को मार्ग नहीं दिखाता।
۞ وَلَقَدْ وَصَّلْنَا لَهُمُ الْقَوْلَ لَعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُونَ |51|28
और हम उनके लिए वाणी बराबर अवतरित करते रहे, शायद वे ध्यान दें।
الَّذِينَ آتَيْنَاهُمُ الْكِتَابَ مِن قَبْلِهِ هُم بِهِ يُؤْمِنُونَ |52|28
जिन लोगों को हमने इससे पूर्व किताब दी थी, वे इसपर ईमान लाते हैं।
وَإِذَا يُتْلَىٰ عَلَيْهِمْ قَالُوا آمَنَّا بِهِ إِنَّهُ الْحَقُّ مِن رَّبِّنَا إِنَّا كُنَّا مِن قَبْلِهِ مُسْلِمِينَ |53|28
और जब यह उनको पढ़कर सुनाया जाता है तो वे कहते हैं, "हम इसपर ईमान लाए। निश्चय ही यह सत्य है हमारे रब की ओर से। हम तो इससे पहले ही से मुस्लिम (आज्ञाकारी) हैं।"
أُولَٰئِكَ يُؤْتَوْنَ أَجْرَهُم مَّرَّتَيْنِ بِمَا صَبَرُوا وَيَدْرَءُونَ بِالْحَسَنَةِ السَّيِّئَةَ وَمِمَّا رَزَقْنَاهُمْ يُنفِقُونَ |54|28
ये वे लोग हैं जिन्हें उनका प्रतिदान दुगना दिया जाएगा, क्योंकि वे जमे रहे और भलाई के द्वारा बुराई को दूर करते हैं और जो कुछ रोज़ी हमने उन्हें दी है, उसमें से ख़र्च करते हैं।
وَإِذَا سَمِعُوا اللَّغْوَ أَعْرَضُوا عَنْهُ وَقَالُوا لَنَا أَعْمَالُنَا وَلَكُمْ أَعْمَالُكُمْ سَلَامٌ عَلَيْكُمْ لَا نَبْتَغِي الْجَاهِلِينَ |55|28
और जब वे व्यर्थ बात सुनते हैं तो यह कहते हुए उससे किनारा खींच लेते हैं कि "हमारे लिए हमारे कर्म हैं और तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्म हैं। तुमको सलाम है! जाहिलों को हम नहीं चाहते।"
إِنَّكَ لَا تَهْدِي مَنْ أَحْبَبْتَ وَلَٰكِنَّ اللَّهَ يَهْدِي مَن يَشَاءُ ۚ وَهُوَ أَعْلَمُ بِالْمُهْتَدِينَ |56|28
तुम जिसे चाहो राह पर नहीं ला सकते, किन्तु अल्लाह जिसे चाहता है राह दिखाता है, और वही राह पानेवालों को भली-भाँति जानता है।
وَقَالُوا إِن نَّتَّبِعِ الْهُدَىٰ مَعَكَ نُتَخَطَّفْ مِنْ أَرْضِنَا ۚ أَوَلَمْ نُمَكِّن لَّهُمْ حَرَمًا آمِنًا يُجْبَىٰ إِلَيْهِ ثَمَرَاتُ كُلِّ شَيْءٍ رِّزْقًا مِّن لَّدُنَّا وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُونَ |57|28
वे कहते हैं, "यदि हम तुम्हारे साथ इस मार्गदर्शन का अनुसरण करें तो अपने भू-भाग से उचक लिए जाएँगे।" क्या ख़तरों से सुरक्षित हरम में हमने उन्हें ठिकाना नहीं दिया, जिसकी ओर हमारी ओर से रोज़ी के रूप में हर चीज़ की पैदावार खिंची चली आती है? किन्तु उनमें से अधिकतर जानते नहीं।
وَكَمْ أَهْلَكْنَا مِن قَرْيَةٍ بَطِرَتْ مَعِيشَتَهَا ۖ فَتِلْكَ مَسَاكِنُهُمْ لَمْ تُسْكَن مِّن بَعْدِهِمْ إِلَّا قَلِيلًا ۖ وَكُنَّا نَحْنُ الْوَارِثِينَ |58|28
हमने कितनी ही बस्तियों को विनष्ट कर डाला, जिन्होंने अपनी गुज़र-बसर के संसाधन पर इतराते हुए अकृतज्ञता दिखाई। तो वे हैं उनके घर, जो उनके बाद आबाद थोड़े ही हुए। अन्ततः हम ही वारिस हुए।
وَمَا كَانَ رَبُّكَ مُهْلِكَ الْقُرَىٰ حَتَّىٰ يَبْعَثَ فِي أُمِّهَا رَسُولًا يَتْلُو عَلَيْهِمْ آيَاتِنَا ۚ وَمَا كُنَّا مُهْلِكِي الْقُرَىٰ إِلَّا وَأَهْلُهَا ظَالِمُونَ |59|28
तेरा रब तो बस्तियों को विनष्ट करनेवाला नहीं जब तक कि उनकी केन्द्रीय बस्ती में कोई रसूल न भेज दे, जो उन्हें हमारी आयतें सुनाए। और हम बस्तियों को विनष्ट करनेवाले नहीं सिवाय इस स्थिति के कि वहाँ के रहनेवाले ज़ालिम हों।
وَمَا أُوتِيتُم مِّن شَيْءٍ فَمَتَاعُ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَزِينَتُهَا ۚ وَمَا عِندَ اللَّهِ خَيْرٌ وَأَبْقَىٰ ۚ أَفَلَا تَعْقِلُونَ |60|28
जो चीज़ भी तुम्हें प्रदान की गई है वह तो सांसारिक जीवन की सामग्री और उसकी शोभा है। और जो कुछ अल्लाह के पास है वह उत्तम और शेष रहनेवाला है, तो क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते?
أَفَمَن وَعَدْنَاهُ وَعْدًا حَسَنًا فَهُوَ لَاقِيهِ كَمَن مَّتَّعْنَاهُ مَتَاعَ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا ثُمَّ هُوَ يَوْمَ الْقِيَامَةِ مِنَ الْمُحْضَرِينَ |61|28
भला वह व्यक्ति जिससे हमने अच्छा वादा किया है और वह उसे पानेवाला भी हो, वह उस व्यक्ति की तरह हो सकता है जिसे हमने सांसारिक जीवन की सामग्री दे दी हो, फिर वह क़ियामत के दिन पकड़कर पेश किया जानेवाला हो?
وَيَوْمَ يُنَادِيهِمْ فَيَقُولُ أَيْنَ شُرَكَائِيَ الَّذِينَ كُنتُمْ تَزْعُمُونَ |62|28
ख़याल करो, जिस दिन वह उन्हें पुकारेगा और कहेगा, "कहाँ हैं मेरे वे साझीदार जिनका तुम्हें दावा था?"
قَالَ الَّذِينَ حَقَّ عَلَيْهِمُ الْقَوْلُ رَبَّنَا هَٰؤُلَاءِ الَّذِينَ أَغْوَيْنَا أَغْوَيْنَاهُمْ كَمَا غَوَيْنَا ۖ تَبَرَّأْنَا إِلَيْكَ ۖ مَا كَانُوا إِيَّانَا يَعْبُدُونَ |63|28
जिनपर बात पूरी हो चुकी होगी, वे कहेंगे, "ऐ हमारे रब! ये वे लोग हैं जिन्हें हमने बहका दिया था। जैसे हम स्वयं बहके थे, इन्हें भी बहकाया। हमने तेरे आगे स्पष्ट कर दिया कि इनसे हमारा कोई सम्बन्ध नहीं। ये हमारी बन्दगी तो करते नहीं थे?"
وَقِيلَ ادْعُوا شُرَكَاءَكُمْ فَدَعَوْهُمْ فَلَمْ يَسْتَجِيبُوا لَهُمْ وَرَأَوُا الْعَذَابَ ۚ لَوْ أَنَّهُمْ كَانُوا يَهْتَدُونَ |64|28
कहा जाएगा, "पुकारो, अपने ठहराए हुए साझीदारों को!" तो वे उन्हें पुकारेंगे, किन्तु वे उनको कोई उत्तर न देंगे। और वे यातना देखकर रहेंगे। काश वे मार्ग पानेवाले होते!
وَيَوْمَ يُنَادِيهِمْ فَيَقُولُ مَاذَا أَجَبْتُمُ الْمُرْسَلِينَ |65|28
और ख़याल करो, जिस दिन वह उन्हें पुकारेगा और कहेगा, "तुमने रसूलों को क्या उत्तर दिया था?"
فَعَمِيَتْ عَلَيْهِمُ الْأَنبَاءُ يَوْمَئِذٍ فَهُمْ لَا يَتَسَاءَلُونَ |66|28
उस दिन उन्हें बातें न सूझेंगी, फिर वे आपस में भी पूछताछ न करेंगे।
فَأَمَّا مَن تَابَ وَآمَنَ وَعَمِلَ صَالِحًا فَعَسَىٰ أَن يَكُونَ مِنَ الْمُفْلِحِينَ |67|28
अलबत्ता जिस किसी ने तौबा कर ली और वह ईमान ले आया और अच्छा कर्म किया, तो आशा है कि वह सफल होनेवालों में से होगा।
وَرَبُّكَ يَخْلُقُ مَا يَشَاءُ وَيَخْتَارُ ۗ مَا كَانَ لَهُمُ الْخِيَرَةُ ۚ سُبْحَانَ اللَّهِ وَتَعَالَىٰ عَمَّا يُشْرِكُونَ |68|28
तेरा रब पैदा करता है जो कुछ चाहता है और ग्रहण करता है जो चाहता है। उन्हें कोई अधिकार प्राप्त नहीं। अल्लाह महान और उच्च है उस शिर्क से, जो वे करते हैं।
وَرَبُّكَ يَعْلَمُ مَا تُكِنُّ صُدُورُهُمْ وَمَا يُعْلِنُونَ |69|28
और तेरा रब जानता है जो कुछ उनके सीने छिपाते हैं और जो कुछ वे लोग व्यक्त करते हैं।
وَهُوَ اللَّهُ لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ۖ لَهُ الْحَمْدُ فِي الْأُولَىٰ وَالْآخِرَةِ ۖ وَلَهُ الْحُكْمُ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ |70|28
और वही अल्लाह है, उसके सिवा कोई इष्ट -पूज्य नहीं। सारी प्रशंसा उसी के लिए है पहले और पिछले जीवन में फ़ैसले का अधिकार उसी को है और उसी की ओर तुम लौटकर जाओगे।
قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِن جَعَلَ اللَّهُ عَلَيْكُمُ اللَّيْلَ سَرْمَدًا إِلَىٰ يَوْمِ الْقِيَامَةِ مَنْ إِلَٰهٌ غَيْرُ اللَّهِ يَأْتِيكُم بِضِيَاءٍ ۖ أَفَلَا تَسْمَعُونَ |71|28
‍‍कहो, "क्या तुमने विचार किया कि यदि अल्लाह क़ियामत के दिन तक सदैव के लिए तुमपर रात कर दे तो अल्लाह के सिवा दूसरा कौन इष्ट-प्रभु है जो तुम्हारे पास प्रकाश लाए? तो क्या तुम सुनते नहीं?"
قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِن جَعَلَ اللَّهُ عَلَيْكُمُ النَّهَارَ سَرْمَدًا إِلَىٰ يَوْمِ الْقِيَامَةِ مَنْ إِلَٰهٌ غَيْرُ اللَّهِ يَأْتِيكُم بِلَيْلٍ تَسْكُنُونَ فِيهِ ۖ أَفَلَا تُبْصِرُونَ |72|28
कहो, "क्या तुमने विचार किया? यदि अल्लाह क़ियामत के दिन तक सदैव के लिए तुमपर दिन कर दे तो अल्लाह के सिवा दूसरा कौन इष्ट-पूज्य है जो तुम्हारे लिए रात लाए जिसमें तुम आराम पाते हो? तो क्या तुम देखते नहीं?
وَمِن رَّحْمَتِهِ جَعَلَ لَكُمُ اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ لِتَسْكُنُوا فِيهِ وَلِتَبْتَغُوا مِن فَضْلِهِ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ |73|28
उसने अपनी दयालुता से तुम्हारे लिए रात और दिन बनाए, ताकि तुम उसमें (रात में) आराम पाओ और ताकि तुम (दिन में) उसका अनुग्रह (रोज़ी) तलाश करो और ताकि तुम कृतज्ञता दिखाओ।"
وَيَوْمَ يُنَادِيهِمْ فَيَقُولُ أَيْنَ شُرَكَائِيَ الَّذِينَ كُنتُمْ تَزْعُمُونَ |74|28
ख़याल करो, जिस दिन वह उन्हें पुकारेगा और कहेगा, "कहाँ हैं मेरे वे साझीदार, जिनका तुम्हे दावा था?"
وَنَزَعْنَا مِن كُلِّ أُمَّةٍ شَهِيدًا فَقُلْنَا هَاتُوا بُرْهَانَكُمْ فَعَلِمُوا أَنَّ الْحَقَّ لِلَّهِ وَضَلَّ عَنْهُم مَّا كَانُوا يَفْتَرُونَ |75|28
और हम प्रत्येक समुदाय में से एक गवाह निकाल लाएँगे और कहेंगे, "लाओ अपना प्रमाण।" तब वे जान लेंगे कि सत्य अल्लाह की ओर से है और जो कुछ वे घड़ते थे, वह सब उनसे गुम होकर रह जाएगा।
۞ إِنَّ قَارُونَ كَانَ مِن قَوْمِ مُوسَىٰ فَبَغَىٰ عَلَيْهِمْ ۖ وَآتَيْنَاهُ مِنَ الْكُنُوزِ مَا إِنَّ مَفَاتِحَهُ لَتَنُوءُ بِالْعُصْبَةِ أُولِي الْقُوَّةِ إِذْ قَالَ لَهُ قَوْمُهُ لَا تَفْرَحْ ۖ إِنَّ اللَّهَ لَا يُحِبُّ الْفَرِحِينَ |76|28
निश्चय ही क़ारून मूसा की क़ौम में से था, फिर उसने उनके विरुद्ध सिर उठाया और हमने उसे इतने ख़जाने दे रखे थे कि उनकी कुंजियाँ एक बलशाली दल को भारी पड़ती थीं। जब उससे उसकी क़ौम के लोगों ने कहा, "इतरा मत, अल्लाह इतरानेवालों के पसन्द नहीं करता।
وَابْتَغِ فِيمَا آتَاكَ اللَّهُ الدَّارَ الْآخِرَةَ ۖ وَلَا تَنسَ نَصِيبَكَ مِنَ الدُّنْيَا ۖ وَأَحْسِن كَمَا أَحْسَنَ اللَّهُ إِلَيْكَ ۖ وَلَا تَبْغِ الْفَسَادَ فِي الْأَرْضِ ۖ إِنَّ اللَّهَ لَا يُحِبُّ الْمُفْسِدِينَ |77|28
जो कुछ अल्लाह ने तुझे दिया है, उसमें आख़िरत के घर का निर्माण कर और दुनिया में से अपना हिस्सा न भूल, और भलाई कर, जैसा कि अल्लाह ने तेरे साथ भलाई की है, और धरती में बिगाड़ मत चाह। निश्चय ही अल्लाह बिगाड़ पैदा करनेवालों को पसन्द नहीं करता।"
قَالَ إِنَّمَا أُوتِيتُهُ عَلَىٰ عِلْمٍ عِندِي ۚ أَوَلَمْ يَعْلَمْ أَنَّ اللَّهَ قَدْ أَهْلَكَ مِن قَبْلِهِ مِنَ الْقُرُونِ مَنْ هُوَ أَشَدُّ مِنْهُ قُوَّةً وَأَكْثَرُ جَمْعًا ۚ وَلَا يُسْأَلُ عَن ذُنُوبِهِمُ الْمُجْرِمُونَ |78|28
उसने कहा, "मुझे तो यह मेरे अपने व्यक्तिगत ज्ञान के कारण मिला है।" क्या उसने यह नहीं जाना कि अल्लाह उससे पहले कितनी ही नस्लों को विनष्ट कर चुका है जो शक्ति में उससे बढ़-चढ़कर और बाहुल्य में उससे अधिक थीं? अपराधियों से तो (उनकी तबाही के समय) उनके गुनाहों के विषय में पूछा भी नहीं जाता।
فَخَرَجَ عَلَىٰ قَوْمِهِ فِي زِينَتِهِ ۖ قَالَ الَّذِينَ يُرِيدُونَ الْحَيَاةَ الدُّنْيَا يَا لَيْتَ لَنَا مِثْلَ مَا أُوتِيَ قَارُونُ إِنَّهُ لَذُو حَظٍّ عَظِيمٍ |79|28
फिर वह अपनी क़ौम के सामने अपने ठाठ-बाट में निकला। जो लोग सांसारिक जीवन के चाहनेवाले थे, उन्होंने कहा, "क्या ही अच्छा होता जैसा कुछ क़ारून को मिला है, हमें भी मिला होता! वह तो बड़ा ही भाग्यशाली है।"
وَقَالَ الَّذِينَ أُوتُوا الْعِلْمَ وَيْلَكُمْ ثَوَابُ اللَّهِ خَيْرٌ لِّمَنْ آمَنَ وَعَمِلَ صَالِحًا وَلَا يُلَقَّاهَا إِلَّا الصَّابِرُونَ |80|28
किन्तु जिनको ज्ञान प्राप्त था, उन्होंने कहा, "अफ़सोस तुमपर! अल्लाह का प्रतिदान उत्तम है, उस व्यक्ति के लिए जो ईमान लाए और अच्छा कर्म करे, और यह बात उन्ही के दिलों में पड़ती है जो धैर्यवान होते हैं।"
فَخَسَفْنَا بِهِ وَبِدَارِهِ الْأَرْضَ فَمَا كَانَ لَهُ مِن فِئَةٍ يَنصُرُونَهُ مِن دُونِ اللَّهِ وَمَا كَانَ مِنَ الْمُنتَصِرِينَ |81|28
अन्ततः हमने उसको और उसके घर को धरती में धँसा दिया। और कोई ऐसा गरोह न हुआ जो अल्लाह के मुक़ाबले में उसकी सहायता करता, और न वह स्वयं अपना बचाव कर सका।
وَأَصْبَحَ الَّذِينَ تَمَنَّوْا مَكَانَهُ بِالْأَمْسِ يَقُولُونَ وَيْكَأَنَّ اللَّهَ يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَن يَشَاءُ مِنْ عِبَادِهِ وَيَقْدِرُ ۖ لَوْلَا أَن مَّنَّ اللَّهُ عَلَيْنَا لَخَسَفَ بِنَا ۖ وَيْكَأَنَّهُ لَا يُفْلِحُ الْكَافِرُونَ |82|28
अब वही लोग, जो कल उसके पद की कामना कर रहे थे, कहने लगे, "अफ़सोस हम भूल गए थे कि अल्लाह अपने बन्दों में से जिसके लिए चाहता है रोज़ी कुशादा करता है और जिसे चाहता है नपी-तुली देता है। यदि अल्लाह ने हमपर उपकार न किया होता तो हमें भी धँसा देता। अफ़सोस हम भूल गए थे कि इनकार करनेवाले सफल नहीं हुआ करते।"
تِلْكَ الدَّارُ الْآخِرَةُ نَجْعَلُهَا لِلَّذِينَ لَا يُرِيدُونَ عُلُوًّا فِي الْأَرْضِ وَلَا فَسَادًا ۚ وَالْعَاقِبَةُ لِلْمُتَّقِينَ |83|28
आख़िरत का घर हम उन लोगों के लिए ख़ास कर देंगे जो न धरती में अपनी बड़ाई चाहते हैं और न बिगाड़। परिणाम तो अन्ततः डर रखनेवालों के पक्ष में है।
مَن جَاءَ بِالْحَسَنَةِ فَلَهُ خَيْرٌ مِّنْهَا ۖ وَمَن جَاءَ بِالسَّيِّئَةِ فَلَا يُجْزَى الَّذِينَ عَمِلُوا السَّيِّئَاتِ إِلَّا مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ |84|28
जो कोई अच्छा आचारण लेकर आया उसे उससे उत्तम प्राप्त होगा, और जो बुरा आचरण लेकर आया तो बुराइयाँ करनेवालों को तो बस वही मिलेगा जो वे करते थे।
إِنَّ الَّذِي فَرَضَ عَلَيْكَ الْقُرْآنَ لَرَادُّكَ إِلَىٰ مَعَادٍ ۚ قُل رَّبِّي أَعْلَمُ مَن جَاءَ بِالْهُدَىٰ وَمَنْ هُوَ فِي ضَلَالٍ مُّبِينٍ |85|28
जिसने इस क़ुरआन की ज़िम्मेदारी तुमपर डाली है, वह तुम्हें उसके (अच्छे) अंजाम तक ज़रूर पहुँचाएगा। कहो, "मेरा रब उसे भली-भाँति जानता है जो मार्गदर्शन लेकर आया, और उसे भी जो खुली गुमराही में पड़ा है।"
وَمَا كُنتَ تَرْجُو أَن يُلْقَىٰ إِلَيْكَ الْكِتَابُ إِلَّا رَحْمَةً مِّن رَّبِّكَ ۖ فَلَا تَكُونَنَّ ظَهِيرًا لِّلْكَافِرِينَ |86|28
तुम तो इसकी आशा नहीं रखते थे कि तुम्हारी ओर किताब उतारी जाएगी। इसकी संभावना तो केवल तुम्हारे रब की दयालुता के कारण हुई। अतः तुम इनकार करनेवालों के पृष्ठपोषक न बनो।
وَلَا يَصُدُّنَّكَ عَنْ آيَاتِ اللَّهِ بَعْدَ إِذْ أُنزِلَتْ إِلَيْكَ ۖ وَادْعُ إِلَىٰ رَبِّكَ ۖ وَلَا تَكُونَنَّ مِنَ الْمُشْرِكِينَ |87|28
और वे तुम्हें अल्लाह की आयतों से रोक न पाएँ, इसके पश्चात कि वे तुमपर अवतरित हो चुकी हैं। और अपने रब की ओर बुलाओ और बहुदेववादियों में कदापि सम्मिलित न होना।
وَلَا تَدْعُ مَعَ اللَّهِ إِلَٰهًا آخَرَ ۘ لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ۚ كُلُّ شَيْءٍ هَالِكٌ إِلَّا وَجْهَهُ ۚ لَهُ الْحُكْمُ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ |88|28
और अल्लाह के साथ किसी और इष्ट-पूज्य को न पुकारना। उसके सिवा कोई इष्ट-पूज्य नहीं। हर चीज़ नाशवान है सिवाय उसके स्वरूप के। फ़ैसला और आदेश का अधिकार उसी को प्राप्त है और उसी की ओर तुम सबको लौटकर जाना है।